UNROUTINE LIFESTYLE OF CITY IN HINDI | असंयमित शहरी जीवन शैली

UNROUTINE LIFESTYLE OF CITY IN HINDI | असंयमित शहरी जीवन शैली

UNROUTINE LIFESTYLE OF CITIZENS | UNROUTINE LIFESTYLE OF CITY IN HINDI

शहरी लोगो की असंयमित जीवन शैली

 आजकल हर व्यक्ति किसी न किसी बड़े शहर में रहने के सपने अवश्य देखता है जबकि कुछ व्यक्ति तो इसके लिए प्रयास करते रहते है की काश वे भी शहर में अपना घर बनाकर रह सके। किन्तु वे लोग इन बातो को को समझने की कोशिश ही नहीं करते की जिन बड़े शहरो में वह बसने के सपने देख रहे है उनकी वास्तविकता असल में क्या है।  

ये बात काफी हद तक सच है की शहरो में रहने वाले लोगो की जीवन शैली बिलकुल बेढंगी और असयंमित हो चुकी है क्योंकि अधिकतर शहरो के लोगो में अपने संस्कृति तथा रीती रिवाजो का पालन में ज्यादा रूचि नहीं होती। शहरी लोग अपने काम में इतने व्यस्त रहते है की उनको दिन भर भाग दौड़ के आलावा रिश्ते नाते निभाने तथा अपने परिवार के लोगो के लिए समय निकलना ही बहुत मुश्किल होता है। ज्यादातर शहरी लोग अपने आदर्शो , जीवन मूल्यों ,सभ्यता तथा अपनी संस्कृति के अवहेलना करते हुए नजर आते है क्योंकि वे अपने दिनचर्या में इतने व्यस्त है की उन्हें केवल अपने लिए अधिक धन कमाने से फुर्सत ही नहीं है। 


दूसरा पहलु ये है की शहरी लोग ज्यादा फैशन उन्मुखी होते है। उन्हें हर दिन कोई न कोई नया ट्रेंड चाहिए होता है इसके लिए चाहे उनको अपने संस्कारो तथा संस्कृति के खिलाफ जाना पड़े। एक शहरी दिन निकलने से लेकर रत होने तक केवल अपने बारे में ही सोचता है और काम करता है। यदि आप भी शहरो में रहते है तो आपको भी जरूर पता होगा की शहरो में लोगो को अपने पडोसी तक के बारे में पता न हो। और ये कोई हैरानी की बात नहीं है। शहरो के लोग जिसमे अधिकतर व्यस्क तथा युवा शामिल होते है हमेशा अपने फैशन के नाम पर अपने संस्कारो ,अपनी मान मर्यादा को एकतरफा नजरअंदाज करते है। उनका मन आध्यात्मिकता में कम और अश्लीलता में ज्यादा लगता है।

इसके अलावा आज कल के युवा पीढ़ी के लोग अपने को हर बात के लिए तैयार समझते है। वे ज़्यदातर  अपने प्रेम प्रसंगो तथा फैशन के नाम पर अश्लीलता को फ़ैलाने का काम करते है। ऐसे लोग आपको किसी भी पब्लिक प्लेस ने दिख ही जाएंगे जो न किसी की शर्म करते है और न परवाह।     

दूसरी और शहरो में लोग शुद्ध और ताज़ा वस्तुओ के लिए हमेशा तरसते है क्योंकि शहरो में हर वस्तु आपको पैकिंग में मिलती है जिसमे न जाने कितनी तरह की मिलावट हुई होती है। न ही ताज़ी सब्जी और ही ताज़ा दूध ,न ही शुद्ध तेल और न ही शुद्ध खाना ये सभी चीजे आपको शहरी  वातावरण में कम ही देखने को मिलती है। यहाँ तक की शहरो की आबो हवा में भी आपको शुद्धता देखने को नहीं मिलती क्योंकि शहरी क्षेत्रो में ज्यादातर इलाके सड़को या गलियों से पक्के हुए होते है जिनमे वनस्पतिया नहीं उगाई जा सकती है। इसकी वजह भी हम इंसान ही है क्योंकि हमने आधुनिकता तथा  शहरीकरण के नाम पर अनेको प्राकृतिक संसाधनों का दुरूपयोग किया है या नष्ट कर दिया है।  

शहरी जीवन जीने के लिए आपको हर काम के लिए पैसे देने होते है चाहे कोई छोटी सी वस्तु हो।  यहाँ तक की आजकल शहरो में फ्रेंडशिप कलब तथा कसीनो डांसिंग बार आदि होते है जो आपसे  थोड़े समय मनोरंजन के लिए काफी पैसे लेते है। अब बताइये ऐसी चीजे होते हुए भला अपनी संस्कृति के बारे में कोन  सोचता होगा। शहरी लोग अधिक शिक्षित होते है जिस वजह से वे अपने सांस्कृतिक मूल्यों से ज्यादा महत्व अपने भौतिक मूल्यों को देते है।  

लेकिन एक बात तो माननी होगी की शहरी क्षेत्रो में रोजगार तथा काम काज के अवसर अधिक होते है जोकि किसी देश के आर्थिक स्थिति के लिए आवश्यक होता है। हमें  परेशानी शहरी लोगो से नहीं है बल्कि उनके द्वारा अपने संस्कृति तथा सांस्कारिक मूल्यों को अवहेलना से है जिससे हमारी देश की संस्कृति की उपेक्षा होती है। माना की आजादी तथा विकसित होने का अधिकार हर इंसान को है लेकिन  इसका ये मतलब नहीं की कोई आजादी या विकसित होने के नाम पर हमारी सांस्कृतिक धरोहर को नुकसान पहुंचाए। 

अगर एक गांव में रहने वाला व्यक्ति शहर में रहने लग जाए तो उसे वहां की हवा ज्यादा दिन तक रास नहीं आ सकती क्योंकि शहरी वातावरण भौगोलिक तथा सांस्कृतिक तौर पर बिलकुल अलग होता है। अपनी संस्कृति के प्रति लगाव क्या  होता है ये आपको किसी गांव में जाकर अनुभव करना चाहिए। 

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