भगवान परशुराम कौन थे ?। परशुराम तथा सहस्त्रार्जुन का युद्ध
जानिए परशुराम ने क्यों काटा अपनी ही माता का सिर?
परशुराम कौन थे ?
परशुराम जी हिंदू धर्म के एक महत्वपूर्ण देवता हैं। परशुराम भगवान विष्णु के छठे आवतार माने जाते हैं। उनके पिता का नाम जमदग्नि था जो एक ऋषि थे। परशुराम जी की माता का नाम रेणुका था। वे तपस्विनी थीं और बहुत ही सात्विक स्वभाव की थीं। परशुराम जी का जन्म का नाम राम था लेकिन जब उन्होंने भगवन शिव से शस्त्र विद्या ग्रहण की तब भगवान शिव उनके कौशल को देखकर प्रसन्न हुए और इसीलिए भगवान् शिव ने उनको अपना परशु भेंट किया। भगवान शिव से प्राप्त परशु को धारण करने के कारन उनका नाम परशुराम पड़ा। परशुराम जी एक बहुत ही शूरवीर थे और धर्म के प्रति अत्यंत निष्ठावान थे। उन्होंने बहुत से अधर्मियों को मार गिराया था तथा भगवान विष्णु के अवतार के रूप में भी कार्य किए थे। उन्होंने अपने पिता के हत्या का प्रतिशोध लेने लिए सहस्त्रबाहु के पूरे वंश का नाश किया तथा पूरी पृथ्वी को 21 बार क्षत्रियों से विहीन कर दिया । इसके बाद से परशुराम जी का नाम क्षत्रियों के लिए एक भयंकर संकट बन गया था। परशुराम जी अमर तथा चिरंजीवी है। उनका इतिहास रामायण और महाभारत काल से भी पहले का है।
भगवान परशुराम |
परशुराम जी का जन्म
भगवान परशुराम का जन्म त्रेता महर्षि भृगु के पुत्र जमदग्नि के पुत्र के रूप में मध्यप्रदेश के इंदौर जिले के मानपुर गाँव के जानापाव पर्वत पर हुआ था। ऋषि जमदग्नि ने पुत्र कामेष्टि यज्ञ संपन्न किया जिससे प्रसन्न होकर देवराज इंद्र ने उन्हें वरदान दिया जिसके फलस्वरूप उनके घर में परशुराम जी का जन्म हुआ। उनका शुरुआत का नाम जामदग्न्य था जोकि उनके पिता जमदग्नि के नाम पर पड़ा। लकिन भगवन शिव का परशु धारण करने के बाद से ही उनको परशुराम के नाम से जाना जाने लगा। उनके चार भाई और थे जिनका नाम रुक्मवान, सुखेण, वसु, विश्वानस था तथा पांचवे स्वयं परशुराम जी थे।
परशुराम ने क्यों काटा अपनी ही माता का सिर
एक बार की बात है जब ऋषि जमदग्नि हवन कर रहे थे। हवन के लिए उन्होंने अपनी पत्नी रेणुका को गंगा नदी का जल लाने के लिए कहा। जब परशुराम की माता रेणुका गंगाजल लेने के लिए गंगा तट पर जाती है । संयोगवश उसी समय गंधर्व राज चित्ररथ अप्सराओं के साथ बिहार कर रहे थे। उनको देखकर रेणुका उनसे आसक्त हो जाती है और वही पर रह कर उनको देखने लगती है जिससे उन्हें समय का बोध नहीं रहता । दूसरी तरफ ऋषि जमदग्नि हवन के लिए गंगाजल की प्रतीक्षा कर रहे थे। लेकिन हवन करने का शुभ मुहूर्त बीत जाने के बाद भी जब उनकी पत्नी रेणुका गंगाजल लेकर नहीं आई तो वह स्वयं उनकी खोज में गंगा की तरफ चल पड़े। जानू ऋषि जमदग्नि ने यह देखा कि उनकी पत्नी रेणुका गंधर्वराज तथा अप्सराओं को विहार करते देख उनकी तरफ निहार रही है तो वह अपनी पत्नी पर बहुत क्रोधित होते है। क्रोध के वश में ऋषि जमदग्नि ने अपनी पत्नी पर मर्यादा भंग करने और व्यभिचार में पड़ने का आरोप लगाया। अपने क्रोध को शांत करने के लिए तथा अपनी पत्नी के दोष की सजा देने के लिए उन्होंने अपने सभी पुत्रों को उनकी माता रेणुका का वध करने का आदेश दिया। लेकिन उनके चारों पुत्रों ने ऐसा दुस्साहस करने की सामर्थ्य नहीं था। इसलिए पिता की आज्ञा का पालन करने का साहस परशुराम जी ने दिखाया और पिता की आज्ञा पालन करते हुए भगवान शिव द्वारा दिए गए परशु से ही अपनी माता का सर धड़ से अलग कर दिया।
परशुराम जी की यह पितृ भक्ति देखकर उनके पिता जमदग्नि बहुत प्रसन्न होते हैं और उनसे और वरदान मांगने के लिए कहते हैं। तब परशुराम जी ने अपने पिता से वरदान के रूप में अपनी माता को पुनर्जीवित करने का अनुरोध करते और यह भी कहते कि वह इस घटनाक्रम से जुड़ी सारी स्मृतियां उनके मस्तिष्क से मिटा दे। वरदान के अनुसार ऋषि जमदग्नि ने अपनी पत्नी रेणुका को पुनर्जीवित कर दिया। इस प्रकार परशुराम जी पितृ भक्त और मातृ भक्त दोनों कहलाए।
परशुराम द्वारा सहस्त्रबाहु का वध
क्षत्रिय वंश में कार्तविर्य अर्जुन नाम का क्षत्रिय था। जिसने भगवान दत्तात्रेय की तपस्या करके उन्हें प्रसन्न किया और उनसे सहस्त्र भुजाओं तथा किसी से भी पराजित ना होने का वरदान मांगा। भगवान दत्तात्रेय के वरदान से कार्ति वीर्य अर्जुन की सहस्त्र भुजाएं बन गई जिसे वह बहुत अधिक शक्तिशाली हो गया। इन सहस्त्र भुजाओं के कारण उसका नाम सहस्त्रार्जुन या सहस्त्रबाहु पड़ गया। एक समय की बात है जब सहस्त्रबाहु अपने सेना को लेकर ऋषि जमदग्नि के आश्रम के पास से गुजर रहे थे। तब रास्ते में थकावट के कारण वे सभी ऋषि जमदग्नि के आश्रम पर रुक जाते हैं।
परशुराम के पिता ऋषि जमदग्नि के पास कपिला कामधेनु नामक गाय थी जोकि उनकी सभी आवश्यकताओं की पूर्ति करने में समर्थ थी। कामधेनु गाय के आशीर्वाद से ऋषि जमदग्नि ने सहस्त्रबाहु तथा उसकी पूरी सेना का सत्कार किया यह देख कर सहस्त्रबाहु को कामधेनु गाय को हथियाने का लोभ जग गया । अपने शक्तियों के अहंकार में चूर सहस्त्रबाहु ने कामधेनु गाय को ऋषि जमदग्नि से बलपूर्वक छीन लिया और आपने साथ ले गए।
जब परशुराम जी को यह पता चला कि सहस्त्रबाहु ने उनके पिता से कामधेनु गाय को छीन लिया है तो उन्होंने अपने पिता के सम्मान की रक्षा के लिए सहस्त्रबाहु से जाकर युद्ध किया। युद्ध करते हुए उन्होंने भगवान शिव द्वारा दिए गए परशु से सहस्त्रबाहु के सभी भुजाओं को काट दिया तथा उसका वध कर दिया।
परशुराम के पिता जमदग्नि की हत्या
परशुराम जी के द्वारा सहस्त्रबाहु का वध कर दिया गया। सहस्त्रबाहु के पुत्रों ने अपने पिता के मृत्यु के प्रतिशोध लेने के लिए ऋषि जमदग्नि के आश्रम में आए और उन्होंने ऋषि जमदग्नि की हत्या कर दी। परशुराम के माता रेणुका ने अपने पति की जलती हुई चिता में ही कूदकर अपने देह त्याग दी। इस घटनाक्रम जय परशुराम जी इतने अधिक कुपित हुए कि उन्होंने क्षत्रिय वंश का नाश करने की शपथ ली।
पिता की हत्या का प्रतिशोध तथा क्षत्रिय वंश का नाश
अपने पिता की हत्या का प्रतिशोध लेने के लिए परशुराम जी ने सहस्त्रबाहु के पूरे वंश का नाश किया तथा पूरी पृथ्वी को 21 बार क्षत्रियों से विहीन कर दिया। कहां जाता है कि परशुराम जी सहस्त्रबाहु के वंश के योध्याओ को मारकर कई सरोवर क्षत्रियों के लहू से भर दिए थे। उन्होंने सहस्त्रबाहु के वंशजों के रक्त से अपने पिता का श्राद्ध किया। उन्हें ऐसा करते देख कर महर्षि ऋचिक सामने आए और उन्होंने परशुराम जी को ऐसा घृणित कृत्य करने से रोक दिया।
अंत में परशुराम जी ने अश्वमेघ यज्ञ करके यह पूरी पृथ्वी ऋषि कश्यप को दान में देकर अपने सभी अस्त्र शस्त्र देवराज इंद्र को सौंप दिए तथा स्वयं महेंद्र गिरी पर्वत पर आश्रम बनाकर निवास करने लगे।
रामायण काल में परशुराम
त्रेता युग में परशुराम जी का जिक्र उस समय आता है जब भगवान श्री राम और माता सीता का विवाह के समय श्रीराम द्वारा भगवान शिव के पिनाक धनुष को भंग किया जाता है। अपने आराध्य तथा गुरु भगवान शिव के धनुष भंग होने पर परशुराम जी की तपस्या भंग होती है और वह क्रोधित होकर राजा जनक के दरबार में पहुंचते हैं जहां पर सीता स्वयंवर रचाया गया था। वहां पहुंचकर परशुराम जी की भेंट श्रीराम से होती है और उन्हें ज्ञात होता है कि अब उनका अवतार काल समाप्त हो गया है। परशुराम जी भगवान विष्णु के छठे अवतार थे जबकि श्री राम भगवान विष्णु के सातवें अवतार थे इसलिए जब उन दोनों की भेंट सीता स्वयंवर में होती है ।
महाभारत काल में परशुराम
द्वापर युग में भी परशुराम जी का महत्वपूर्ण योगदान रहा है जिसमें उन्होंने बहुत से बड़े-बड़े योद्धाओं को धनुर्विद्या की शिक्षा दी थी। परशुराम जी ने धनुर्विद्या अपने पिता जमदग्नि से तथा स्वयं भगवान शिव से सीखी थी। इसी कारण वह धनुर्विद्या तथा अस्त्र विद्या के बहुत बड़े ज्ञाता थे। पांडवों तथा कौरवों के गुरु द्रोणाचार्य, गंगापुत्र भीष्म तथा सूर्यपुत्र कर्ण ने भी धनुर्विद्या का ज्ञान परशुराम जी से ही पाया था। परशुराम जी ने कभी भी पराजय का मुंह नहीं देखा। लेकिन महाभारत काल में जब अंबा नामक युवती को न्याय दिलाने के लिए उन्हें अपने ही शिष्य भीष्म से युद्ध करना पड़ा तो उस युद्ध में वह अपने ही शिष्य भीष्म से पराजित हो गए थे।
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