जानिए कौन है यक्षिणियां, कल्पना या वास्तविकता | Know who are Yakshini's, in HIndi

जानिए कौन है यक्षिणियां, कल्पना या वास्तविकता | Know who are Yakshini's, in HIndi

यक्षिणियां कौन है और कितनी शक्तिशाली है | उत्पत्ति तथा साधना

 Who are Yakshini's fiction or reality      

हिंदू धर्म में आपने कभी ना कभी यक्षिणी का जिक्र अवश्य सुना होगा। आजकल के कार्टून वीडियोस में बहुत सी यक्षिणी की कहानियां दिखाई जाती हैं जिनमें दिखाया जाता है कि यक्षिणी एक देवी का रूप होती हैं और उसकी साधना करके कोई भी इंसान अपनी मनचाही इच्छा की पूर्ति कर सकता है। तो चलिए हम चर्चा करते हैं कि यक्षिणियां वास्तव में होती हैं या वे एक कल्पना मात्र हैं।
कौन है यक्षिणियां
यक्षिणि

कौन है यक्षिणियां।

यक्षिणी का उल्लेख रामायण कथा महाभारत दोनों ग्रंथों में मिलता है। एक यक्षिणी किसी देवी का रूप होती हैं जिनका तंत्र साधना में बहुत महत्त्व होता है। उनके स्वामी स्वयं कुबेर हैं जो कि धन के देवता हैं। एक यक्षिणी अपार शक्तिशाली होती हैं। इनको तंत्र साधना करके प्रसन्न किया जा सकता है और एक बार प्रसन्न होने के बाद मनुष्य इनसे कोई भी मनचाही इच्छा की पूर्ति कर सकता है। अधिकतर मनुष्य यक्षिणी की साधना अधिक धन पाने के लिए, संतान प्राप्ति के लिए, शारीरिक सुख के लिए, व्यापार में लाभ के लिए, तथा सांसारिक विलासिता तथा कामपूर्ति के सुखों के लिए करता है।

यक्षिणियों की उत्पत्ति कैसे हुई।

हिंदू धर्म के मान्यता के अनुसार यक्षिणी देवी का रूप होती है जिनके स्वामी कुबेर है। यक्षिणीयों के उत्पत्ति की कहानी प्राचीन समय से मानी जाती हैं जब भगवान शिव की पहली पत्नी माता सती के मृत्यु के पश्चात भगवान शिव गहरी समाधि में चले गए थे। तब बहुत समय पश्चात माता आदिशक्ति ने देवी पार्वती के रूप में जन्म लिया देवी पार्वती जैसे-जैसे बड़ी होती गई उन्हें शिव के प्रति प्रेम होने लगा और वह भगवान शिव को पति रूप में पाने के लिए तपस्या करने लगी। एक समय एक पर्वतीय हिमखंड की गुफा में भगवान शिव समाधिस्थ थे। तथा उस गुफा के बाहर माता पार्वती उनसे भेंट करने के लिए गुफा के बाहर बैठकर उनकी आराधना करने लगी। देवराज इंद्र के कहने पर कामदेव वहां पर पहुंचे और उन्होंने अपनी कामेच्छा ऊर्जा से परिपूर्ण एक बाण महादेव पर चलाया। यह बाण चलाने के लिए देवराज इंद्र ने ही कामदेव से कहा था ताकि भगवान शिव की समाधि को भंग करके उन्हें सांसारिकता की तरफ लाया जा सके । लेकिन कामदेव ने सोचा कि वह इसी तरह का एक बाण माता पार्वती की तरफ भी चला देता है कामदेव का यह मानना था कि उसके बाण से माता पार्वती में भी कामेच्छा बढ़ जाएगी और वह भगवान शिव को पाने के लिए अधिक प्रयास करेंगी । जब कामदेव न कामेच्छा का बाण माता पार्वती की तरफ चलाया तो उससे उनके माथे पर उनकी काम भावना के रूप में पसीना आने लगा। वहां पसीना आदिशक्ति के उर्जा से परिपूर्ण था। इसलिए जब माता पार्वती ने अपने पसीने को हाथ से पूछ कर जमीन पर फेंका तो वह अनेक बूंदों में विभाजित हो गया। देवी पार्वती के माथे के पसीने से जितने भी जल की बूंदें जमीन पर गिरी उन सभी जल की बूंदों से यक्षिणियों का जन्म हुआ। स्वयं आदिशक्ति की ऊर्जा होने के कारण यक्षिणी या बहुत अधिक शक्तिशाली होती हैं। यदि कोई व्यक्ति एक बार साधना करके किसी भी यक्षिणी को प्रसन्न कर लेता है तो वह उससे अपने जीवन के किसी भी बड़े से बड़े संकट तथा मनचाही इच्छा की पूर्ति कर सकता है।     अधिक पढ़े -     

कितनी शक्तिशाली है यक्षिणियां 

यक्षिणीयां अपार शक्तिशाली होती हैं तथा वे भूमि, पाताल लोक, देवलोक तथा ब्रह्मलोक सभी स्थानों पर विचरण कर सकती हैं। एक यक्षिणी मनुष्य के सभी इच्छाओं की पूर्ति करने में सक्षम होती हैं। किसी भी यक्षिणी की साधना एक पत्नी के रूप में, प्रेमिका के रूप में, माता के रूप में या देवी के रूप में की जा सकती हैं। इनकी साधना करने के लिए मनुष्य को एकाग्र होकर ध्यान करना पड़ता है तथ तंत्र विद्या के द्वारा इन्हें सिद्ध करना होता है। यक्षिणी अपने साधक की परीक्षा भी लेती है यदि कोई भी गलती हो जाए तो साधना करने वाले व्यक्ति का जीवन पर संकट आ जाता है।   

यक्षिणि
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कुछ यक्षिणियों के नाम

हिंदू धर्म ग्रंथों में 36 प्रकार की यक्षिणी का जिक्र किया गया है जिनमें से 4 प्रकार की यक्षिणीयां आज तक अज्ञात है। इनमे मुख्यत सुरसुंदरी, मनोहारिणी, प्रतिप्रिया, कामिनी, अनुरागिनी, कनकावती, पदमिनी, कर्म पिशाचिनी, कामेश्वरी, नटी, शशानी, विचित्रा, धान्या आदि यक्षिणियों के नाम है। इनको सकारात्मक शक्तियों के रूप में देखा जाता है जबकि पिशाचिनियो को नकारात्मक ऊर्जा के रूप में देखा जाता है। 

रामायण तथा महाभारत में उल्लेख 

माना जाता है कि रामायण काल में ताड़का नाम की राक्षसी वास्तव में एक यक्षिणी थी जिसे केवल भगवान राम ही मार सकते थे। इसके अलावा महाभारत में भी जब पांडव वन में भटक रहे होते हैं तब जल की तलाश में वे एक जलाशय के पास पानी पीने जाते हैं जहां पर उनका सामना एक यक्ष से होता है । हाय अक्षिता अधिक शक्तिशाली होता है कि उसके द्वारा किए गए प्रश्नों के उत्तर नया देने के कारण युधिष्ठिर के चारों अनुज भाई भीम, अर्जुन, नकुल,  सहदेव मूर्छित हो जाते हैं।

ऋषि से मिला था श्राप

शुरुआत में सभी यक्षिणी या स्वतंत्र होकर संसार के किसी भी स्थान पर  घूमती थी  तथा किसी भी ऋषि की तपस्या भंग कर देती थी । उनके इस स्वभाव से तंग आकर ऋषि विश्रवा ने यक्षिणियों को श्राप दिया की जब तक कोई तंत्र साधना के द्वारा उनको सिद्ध नहीं करता तब तक वे अपनी देवी ऊर्जा का  प्रयोग नहीं कर पाएंगी।     अधिक पढ़े -

FAQ

प्रश्न 1. यक्षिणी क्या होती है या कौन होती है ?

उत्तरएक यक्षिणी किसी देवी का रूप होती हैं जिनका तंत्र साधना में बहुत महत्त्व होता है। उनके स्वामी स्वयं कुबेर हैं जो कि धन के देवता हैं। एक यक्षिणी अपार शक्तिशाली होती हैं। इनको तंत्र साधना करके प्रसन्न किया जा सकता है|

प्रश्न 2.  कितनी शक्तिशाली होती है यक्षिणी ?  

उत्तर -  यक्षिणीयां अपार शक्तिशाली होती हैं तथा वे भूमि, पाताल लोक, देवलोक तथा ब्रह्मलोक सभी स्थानों पर विचरण कर सकती हैं। एक यक्षिणी मनुष्य के सभी इच्छाओं की पूर्ति करने में सक्षम होती हैं। अधिक पढ़े -

प्रश्न 3.  यक्षिणी की साधना क्यों की जाती है ?

उत्तर - अधिकतर मनुष्य यक्षिणी की साधना अधिक धन पाने के लिए, संतान प्राप्ति के लिए, शारीरिक सुख के लिए, व्यापार में लाभ के लिए, तथा सांसारिक विलासिता तथा कामपूर्ति के सुखों के लिए करता है।

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