भगवान शिव के अस्त्र जिनसे देवता भी डरते है | Weapons of Lord Shiva in hindi

भगवान शिव के अस्त्र जिनसे देवता भी डरते है | Weapons of Lord Shiva in hindi

भगवान शिव का अस्त्र कौन सा है | भगवान शिव के सभी अस्त्र |त्रिशूल का रहस्य | शिव का धनुष | सुदर्शन चक्र 

Weapons of Lord Shiva in Hindi | Shiv ka Astra Kya Hai

देवों के देव कहे जाने वाले महादेव को वैसे तो किसी भी  अस्त्र या शस्त्र की आवश्यकता नहीं होती क्योंकि भगवान शिव के तीसरे नेत्र में इतनी उर्जा समाहित है कि पूरे ब्रह्मांड को भस्म करने की क्षमता रखती है । लेकिन फिर भी हमे महाग्रंथो तथा पुराणों में महादेव के कुछ अस्त्रों का वर्णन देखने को मिलता है। ऐसे अस्त्र थे जीने आदि अनादि महादेव ने स्वयं निर्मित किया था। तो आइए जानते हैं भगवान शिव द्वारा बनाए गए कुछ अस्त्रों के बारे में।    और अधिक पढ़े -  

त्रिशूल 

त्रिशूल भगवान शिव का सबसे अहम् अस्त्र है क्योंकि वे हमेशा त्रिशूल को अपने पास रखते है। त्रिशूल में तीन शूल मौजूद है जोकि तीन गुणों सत्व गुण, रजो गुण तथा तमो गुण को दर्शाते है इसी के साथ ही यह तीन काल भूत, वर्तमान, और भविष्य को भो दर्शाते है। त्रिशूल पर हमेशा एक डमरू बंधा रहता है जिससे इस सृष्टि में संगीत की उत्पत्ति हुई थी। यह महादेव (भगवान शिव) का सबसे घातक अस्त्र है इसके द्वारा महादेव ने बहुत से दानवो, राक्षसों आदि का वध किया था। त्रिशूल महादेव के द्वारा मानसिक रूप से संचालित होता है। इसका मतलब यह है की अपने लक्ष्य को नष्ट करने के बाद त्रिशूल अपने आप ही महादेव के पास आ जाता है।


त्रिशूल का रहस्य
त्रिशूल 

भगवान शिव के अस्त्र त्रिशूल में इतनी अधिक ऊर्जा समाहित है जिससे कोई भी देव या दानव बच नहीं सकता। ऐसा मन जाता है की यदि एक बार त्रिशूल किसी पर चला दिया जाता है तो वह अपने लक्ष्य को नष्ट करके ही लौटता है। महाग्रंथों में यह वर्णित है की एक बार भगवान विष्णु और भगवान शिव के बीच युद्ध हो गया था तब महादेव ने विष्णु पर त्रिशूल छोड़ दिया था। वह त्रिशूल भगवान विष्णु के वक्ष यानि छाती में  जाकर लगा। लेकिन उससे विष्णु जी पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा क्योंकि पुराणों में भगवान शिव और भगवान विष्णु को समकक्ष यानि एक समान शक्तिशाली माना  गया है। लेकिन फिर भी त्रिशूल के वार के कारण विष्णु के वक्ष स्थल पर तीन घाव हो गए थे।    और अधिक पढ़े -

सुदर्शन चक्र

भगवान शिव का दूसरा अस्त्र है सुदर्शन चक्र। अक्सर आपने  सुदर्शन चक्र हमेशा भगवान विष्णु के हाथों में देखता होगा क्योंकि भगवान विष्णु ही हमेशा सुदर्शन चक्र को धारण करते हैं, और यह सत्य भी है। लेकिन बहुत कम लोग इस तथ्य को जानते हैं कि सुदर्शन चक्कर का निर्माण भगवान शिव ने ही किया था। दुष्टों का संहार करने के लिए और  बुराइयों का नाश करने के लिए भगवान शिव ने यह सुदर्शन देखकर भगवान विष्णु को सौंप दिया था।

सुदर्शन चक्र
सुदर्शन चक्र

भगवान शिव ने एक नहीं बल्कि 2 बार भगवान विष्णु को सुदर्शन चक्र दिया था | दूसरी बार जब भगवान विष्णु की पत्नी लक्ष्मी की बहनों ने तपस्या करके भगवान विष्णु को पाताल लोक में रहने के लिए विवश कर लिया था तब महादेव वृषभ अवतार में भगवान विष्णु से लड़ने  तथा उनको वापस लाने के लिए पताल में गए थे। लक्ष्मी की बहनों के वरदान के मुताबिक भगवान विष्णु को सब कुछ भूल कर पाताल लोक  में उनके साथ रहना था | इसलिए भगवान विष्णु महादेव तथा अन्य पूरी सृष्टि के बारे में कुछ भी नहीं जानते थे। वहां जाकर महादेव ने कई वर्षों तक लगातार भगवान विष्णु से युद्ध किया अंत में भगवान गणेश ने भगवान विष्णु को याद दिलाने में सहायता के कि वह इस सृष्टि के पालनहार है, तब जाकर भगवान विष्णु और महादेव का युद्ध समाप्त हुआ । तब भगवान विष्णु को यह  आभास हुआ कि उनका सुदर्शन चक्र पाताल लोक में ही छूट गया है | लेकिन भगवान शिव ने उनसे कहा कि वह   सुदर्शन चक्र को पाताल लोक में ही रहने दें | तब भगवान शिव ने भगवान विष्णु को एक और सुदर्शन चक्र भेंट किया था।  और अधिक पढ़े -

पिनाक धनुष 

आपने रामायण और महाभारत में भगवान शिव के धनुष के बारे में अवश्य सुना होगा। भगवान शिव का धनुष पिनाक धनुष के नाम से जाना जाता था । यह धनुष बहुत ही शक्तिशाली तथा विनाशकारी ऊर्जा से भरा हुआ था। भगवान शिव ने इसी पिनाक धनुष से ताड़कासुर नामक असुर के तीनों पुत्रों को उनके पुरों सहित एक ही बाण से नष्ट कर दिया था। इसी वजह से भगवान शिव को त्रिपुरारी के नाम से भी जाना जाने लगा था। 


महादेव का धनुष
शिव का धनुष 

पिनाक धनुष का निर्माण भगवान शिव ने स्वयं किया था ।भगवान शिव ने इस धनुष को देवताओं का काल समाप्त होने पर देव रात को सौंप दिया था। देवराज राजा जनक के पूर्वज थे। बहुत समय तक यह धनुष जनकपुरी राज्य में रहा और भगवान विष्णु श्री राम के अवतार में धरती पर आए तो राजा जनक की पुत्री सीता के स्वयंवर में महादेव के इस पिनाक धनुष को तोड़ दिया था।और अधिक पढ़े -

रुद्रा अस्त्र

भगवान शिव का यह रुद्रास्त्र अत्यधिक भयंकर और प्रलयंकारी था। रुद्रास्त्र को भगवान शिव का एक अंश है माना जाता था क्योंकि भगवान शिव का एक नाम रुद्र भी है। भगवान शिव के रूद्र रूप का अर्थ है उनका क्रोधित स्वरूप। जब देवों के देव महादेव क्रोधित होते हैं तो यह सृष्टि के लिए कितना प्रलयंकारी हो सकता है इसके कल्पना आप स्वयं ही कर सकते हैं। महादेव की ऐसी प्रलयंकारी ऊर्जा का प्रतीक था यह रुद्रास्त्र।

पाशुपत अस्त्र  

पशुपात अस्त्र देखने में बिल्कुल त्रिशूल के जैसा होता है लेकिन वह त्रिशूल का जैसे छोटा स्वरूप होता है इसमें भगवान शिव के त्रिशूल जितनी ही ऊर्जा समाहित रहती है। यह अस्त्र ब्रह्म देव की ब्रह्मास्त्र और भगवान विष्णु के नारायणास्त्र की तरह ही शक्तिशाली था। पशुपात अस्त्र का वर्णन हमें महाभारत काल में देखने को मिलता है। जब अश्वत्थामा ने पांडवों का विनाश करने के मकसद से पांडवों पर चला दिया था। तब श्री कृष्ण ने अर्जुन से कहा था कि ब्रह्मास्त्र का मुकाबला केवल भगवान शिव का पाशुपातस्त्र ही कर सकता है। पाशुपतास्त्र का निर्माण स्वयं महादेव ने ही किया था । बहुत से योद्धाओं ने युद्ध के मकसद से भगवान शिव के पशुपतास्त्र को उनकी तपस्या करके प्राप्त किया था। 

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