बाबा खाटू श्याम कौन है | बाबा खाटू श्याम की कहानी | Baba Khatu Shyam In Hindi

बाबा खाटू श्याम कौन है | बाबा खाटू श्याम की कहानी | Baba Khatu Shyam In Hindi

बाबा खाटू श्याम कौन है बाबा खाटू श्याम की कथा (कहानी)    खाटू श्याम मंदिर कहाँ है। 

(KHATU SHYAM STORY IN HINDI | BARBAREEK STORY IN HINDI )

बाबा खाटू श्याम कौन है। (KHATU SHYAM KON HAI)

बाबा खाटू श्याम की कथा महाभारत से सम्बंधित है। खाटू श्याम जी का वास्तविक नाम बर्बरीक था। जिन्हे श्री कृष्ण का कलयुगी अवतार के रूप में भी जाना जाता है। बर्बरीक (खाटू श्याम) पाण्डुपुत्र भीम के पौत्र तथा भीमपुत्र घटोत्कच के पुत्र थे। बर्बरीक ने अपनी माता को वचन दिया था किया वे हमेशा हारने वाले पक्ष का साथ देंगे, इसीलिए इन्हे " हारे का सहारा" भी कहा जाता है।  और पढ़े :-

खाटू श्याम मंदिर (Khatu Shyam Temple)

राजस्थान के सीकर जिले में बाबा खाटू श्याम जी का भव्य मंदिर है। जहा पर लाखो भक्त रोज बाबा खाटू श्याम के दर्शन करने के लिए आते है। भक्तो का मानना है की बाबा श्याम उनकी सभी मनोकामनाएं पूरी करते है इसलिए उन्हें हारे का सहारा भी कहा जाता है।


बाबा खाटू श्याम कौन है
बाबा खाटू श्याम

इस मंदिर में सालभर बाबा श्याम के प्रति आस्था रखने वाले 40 लाख भक्त हर साल उनके दर्शन के लिए पहुंचते हैं। खासतौर से होली के कुछ दिनों पहले फरवरी -मार्च में यहां खाटू श्याम जी का भव्य मेला आयोजित होता है, जिसमें देश ही नहीं विदेशों से भी बाबा के भक्त उनके दर्शन के लिए आते हैं। खाटू श्याम मंदिर के बारे में बताया जाता है कि खाटू श्याम जी का ये मंदिर महाभारत काल में बना था।  
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खाटू श्याम (बर्बरीक) के जन्म की कहानी 

वन में भीम का सामना हिडिंब नाम के राक्षस से हुआ था। उस युद्ध में भीम ने राक्षस हिडिंब को मार गिराया। हिडिंब राक्षस की एक बहन थी जिसका नाम हिडिंबा था। हिडिंबा भीम के पराक्रम से उस पर मोहित हो गई और माता कुंती से आग्रह किया कि वह भीम से  विवाह करना चाहती  हैं।  हिडिंबा ने कहा कि वह भीम को हमेशा अपने साथ नहीं रखेंगे केवल गर्भवती होने तक वह भीम को अपने साथ रखेंगे और फिर उनके पास पहुंचा देगी  । भीम और हिडिंबा का 1 पुत्र पैदा हुआ जिसका नाम घटोत्कच था । घटोत्कच की मुलाकात अपने पिता भी हमसे तब हुई जब पांचो पांडव पत्नी द्रोपदी के साथ 12 वर्ष के वनवास पर निकले थे | 

भीम के पुत्र घटोत्कच का एक पुत्र हुआ जिसका नाम बर्बरीक रखा गया । बर्बरीक भीम तथा हिडिम्बा का पौत्र था। इसलिए उसमे अपने दादा भीम का अपार बल तथा दादी हिडिम्बा के मायावी गुण विद्यमान थे। बर्बरीक बालपन से ही चतुर,योग्य तथा जिज्ञासु  था इसलिए उसके  पिता घटोत्कच बर्बरीक को श्री कृष्ण के पास ले गए। कृष्ण जी ने उसकी जिज्ञासा शांत करने के लिए उसे एक गुरु के पास शिक्षा प्राप्त करने के लिए भेजा। अंत में उनकी जिज्ञासा शांत करने के लिए उनके गुरु ने बर्बरीक को माँ दुर्गा की तपस्या करने को कहा। 

बर्बरीक के तीन तीर

बर्बरीक ने कड़ी तपस्या करके  माँ दुर्गा  को प्रसन्न किया और उनसे वरदान में तीन दिव्य तीर प्राप्त किए। यह तीनों तीर इतने अधिक शक्तिशाली थे जिनसे बड़े से बड़े युद्ध को पल भए में समाप्त किया जा सकता था। पहला तीर अपने अनगिनत  लक्ष्य  को भी  चिन्हित कर सकता था। उसके बाद दूसरा तीर चिन्हित लक्ष्य पर  सीधा वार करता तथा तीसरा तीर चलने पर वहा पर मौजूद हर वास्तु को नस्ट कर देता। 

बर्बरीक के तीन तीरो को बात सुनकर उनकी माता ने उनसे  एक वचन मांगा था किवह  हमेशा कमजोर पक्ष का साथ देंगे । भगवान श्री कृष्ण बर्बरीक की शक्ति को जानते थे इसलिए उन्हें पता था कि यदि बर्बरीक महाभारत के युद्ध में शामिल होगा तो उसके तीर सभी को नष्ट कर देंगे। जबकि महाभारत का युद्ध धर्म के लिए लड़ा जाना था। यही सोचकर श्रीकृष्ण ने बर्बरीक से उसका सर देने के लिए कहा। 

KHATU SHYAM
बाबा खाटू श्याम

श्री कृष्ण की बात का मान रखने के लिए बर्बरीक ने स्वयं अपनी तलवार से अपने सर को धड़ से अलग कर दिया और श्रीकृष्ण को दे दिया। बर्बरीक की यह आज्ञाकारिता देखकर श्रीकृष्ण बहुत प्रसन्न हुए और बर्बरीक को वरदान मांगने के लिए कहा।  बर्बरीक ने से कहा की वह महाभारत का युद्ध देखना चाहते है। इसलिए बर्बरीक ने श्री कृष्ण से अनुरोध किया कि वह उसके सर को किसी ऊँची पहाड़ी के ऊपर रख दें ताकि वहां से वह महाभारत का युद्ध देख पाए। और पढ़े :-

श्री कृष्ण ने बर्बरीक को यह वरदान  दिया की वह महाभारत के युद्ध को बारीकी से देख पाएंगे। हर समय तथा हर योद्धा को लड़ते हुए साक्षात् देख पाएंगे तथा युद्ध के परिणाम का विश्लेषण भी कर पाएंगे। इसलिए युद्ध समाप्त होने के बाद जब सबने यह जानना चाहा की पांडवो की जीत वास्तव में किसकी वजह से हुई तब बर्बरीक ने यह स्पष्ट किया  पांडवो की जीत का श्रेय श्री कृष्ण का है उनकी वजह से ही पांडव इस धर्मयुद्ध को जीत पाए। 

बर्बरीक की यह उत्तर सुनकर श्री कृष्ण उनकी सत्यनिष्ठा बहुत प्रसन्न हुए और भगवान श्रीकृष्ण ने उन्हें वरदान दिया था कि खाटू श्याम जी कलयुग में उनके नाम श्याम के नाम से पूजे जाएंगे। इसीलिए कहा जाता है "हारे का सहारा" " बाबा श्याम हमारा" | जय बाबा खाटू श्याम की | 

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