रावण द्वारा सीता हरण की कथा, रावण - मारीच संवाद, लक्ष्मण रेखा रावण और जटायु का युद्ध | (Sita Haran ki Kahani Hindi me)
रावण जो कि उस समय त्रलोक विजेता था इसलिए उसे अपनी शक्तियों पर बहुत अहंकार था। सूर्पनखा की बातें सुनकर रावण ने अपने अहम को और पोषित किया और कहा कि किसी साधारण मानव का ऐसा दुस्साहस जिसने हमारी बहन का अपमान किया वह निश्चित ही मृत्यु के लायक है और रावण के हाथों दंड पाने का अधिकारी है। मैं अवश्य ही राम की रूपवती पत्नी सीता का अपहरण कर लूंगा तथा अपनी रानी बना लूंगा।
रावण - मारीच संवाद
यह विचार करके लंकापति रावण अपने मामा मारीच के पास पहुंचते हैं। मारीच राक्षसी ताड़का का पुत्र था जो दंडकारण्य वन में श्री राम के हाथों बच निकला था। लंकापति रावण अपने मामा मारीच को राम लक्ष्मन के द्वारा शूर्पणखा का अपमान तथा खर दूषण के वध के बारे में बताता है तथा मारीच से यह भी निवेदन करता है कि वह राम की पत्नी सीता के हरण में उसकी सहायता करें। असुर मारीच श्री राम की शक्ति को दंडकारण्य वन में देख चुका था इसलिए मारीच बार-बार लंकापति रावण को यह समझाने का प्रयत्न कर रहा था कि यह न्याय उचित नहीं है और धर्म संगत भी नहीं है कि आप किसी पराई स्त्री का हरण करें। लेकिन अपने अहंकार के वशीभूत रावण ने मारीच की सभी बातों और तर्कों को खारिज करते हुए कहा कि वह तीनों लोकों का स्वामी है और विश्व की हर सुंदर वस्तु पर उसका अधिकार है। इसके बाद लंकापति रावण मारीच को धमकी देता है कि यदि वह उसकी सहायता नहीं करेगा तो वह उसे मृत्युदंड देगा। रावण द्वारा मृत्युदंड से बचने के लिए मारीच आखिरकार उनकी सहायता के लिए तैयार हो जाता है। और पूछता है कि वह रावण की सहायता किस प्रकार कर सकता है।
स्वर्ण मृग (हिरन)
तब लंकापति रावण मारीच को कहते हैं कि तुम एक अद्भुत स्वर्ण मृग (हिरण) का रूप धारण करो जिसके सींग सोने के हों तथा जिसकी चमड़ी सुनहरे रंग की हो। ऐसे अद्भुत हिरण को देखकर सीता अवश्य ही उसकी मांग करेगी और राम लक्ष्मण को उसका शिकार करने के लिए बोलेगी। जब राम लक्ष्मण उस सुनहरे मृग (हिरण) के पीछे पीछे जाएंगे तब मैं सीता का हरण कर लूंगा। रावण की बात मानकर मारीच एक अद्भुत सुनहरे हिरण का रूप धारण करके श्री राम लक्ष्मण की कुटिया की तरफ जाकर विचरण करने लगता है। सीता जी की नजर जब उस हिरण पर पड़ती है तो वह उस स्वर्ण मृग के सुंदर रूप को देखकर मोहित हो जाती है । कुटिया में आकर वह श्री राम लक्ष्मण को उस स्वर्ण मृग के बारे में बताती हैं और इच्छा जाहिर करती हैं कि वह मृग उन्हे चाहिए। सीता के इच्छा का मान रखते हुए श्री राम लक्ष्मण को वहीं छोड़कर हिरन रूपी मारीच के पीछे धनुष बाण लेकर चल पड़ते हैं। श्री राम को अपनी ओर आता देख कर योजना के अनुसार मृग के वेश में मारीच कुटिया से दूर भाग जाता है जिसके पीछे श्रीराम भी चले जाते हैं।
कुछ समय तक स्वर्ण मृग के पीछे भागते हुए श्रीरम उस पर बाण चला देते हैं। बाण लगते ही मारीच श्रीराम के जैसे स्वर में चिल्लाने लगता है हे सीते हे लक्ष्मण, हे सीते हे लक्ष्मण। श्री राम जैस स्वर में अपना और लक्ष्मण का नाम सुनकर सीता जी को यही लगता है कि श्रीराम पर कोई संकट आ गया है और वह मदद के लिए लक्ष्मण तथा उन्हें पुकार रहे हैं। इसलिए सीता जी लक्ष्मण को तुरंत अपने भैया की सहायता के लिए जाने को कहती लेकिन लक्ष्मण उनकी बात मानने से मना कर देते हैं। क्योंकि लक्ष्मण जी को पता था की श्रीराम का कोई कुछ भी बिगाड़ नहीं सकता यह किसी असुर की चाल हो सकती है। लेकिन अपने पति के ऐसे स्वर सुनने के बाद सीता जी को शांति नहीं हो रही थी और वह लक्ष्मण को बार-बार जाने के लिए कहती है। जब लक्ष्मण नहीं मानते तो वह उन्हें अपशब्द कहने लगती हैं।
लक्ष्मण रेखा
अंत में लक्ष्मण जी के पास कोई और रास्ता नहीं होता इसलिए वह सीता जी की सुरक्षा के लिए कुटिया के दहलीज के पास एक रेखा खींच देते है और बोलते हैं कि जो भी इस रेखा को पार करने की कोशिश करेगा वह जलकर भस्म हो जाएगा। अंत में लक्ष्मण जाते-जाते माता सीता से कहते हैं कि आप कितनी भी विकट परिस्थिति में इस रेखा को पार नहीं करेंगी। और कोई भी असुर, देव या जीव इस लक्ष्मण रेखा को पार नहीं कर पाएगा। कहकर लक्ष्मण कुटिया से चले जाते है।
लक्ष्मी जी के जाते ही कुटिया के आस पास झाड़ियों में छुपा हुआ रावण बाहर निकलता है और कुटिया के अंदर जाने की कोशिश करता है। लेकिन जैसे ही रावण लक्ष्मण द्वारा खींची गई लक्ष्मण रेखा पर पैर रखता है तो उसके पैर जल जाते हैं। बार-बार प्रयत्न करने के बाद भी जब रावण कुटिया में प्रवेश नहीं कर पाया तो उसने दूसरी योजना सोची। तब रावण एक साधु का वेश धारण करके कुटिया के बाहर अलख जगाता है। कुटिया के बाहर आए किसी साधु की आवाज सुनकर माता सीता कुटिया से बाहर आती है तो देखती हैं एक साधु उनके दरवाजे पर भिक्षा मांग रहा है। भिक्षा लेकर सीता कुटिया से बाहर आती हैं और लक्ष्मण रेखा के पास आकर खड़ी हो जाती और रावण (साधु) को बोलती है कि वह आकर भिक्षा ले ले। क्योंकि वह इस रेखा से बाहर नहीं आ सकती। इस पर साधु के भेष में रावण बोलता है कि तु शायद हमें नहीं जानती हैं, हम परम तपस्वी साधु हैं यदि तुम बाहर भिक्षा लेकर नहीं आई तो मैं तुम्हारे पति को श्राप दे दूंगा।
सीता हरण
अपने पति श्री राम को साधु क्रोध के अनिष्ट से बचाने के लिए सीता जी रोते हुए लक्ष्मण रेखा को पार करके साधु के पास चली जाती है फिर बोलती हैं मुनिवर कृपया करके मेरे पति को श्राप मत देना मैं भिक्षा लेकर आ गई हु। सीता जी को अपने समीप आया देखकर रावण अपने वास्तविक रूप में आ जाता है और देवी सीता का हरण करके बलपूर्वक अपने पुष्पक विमान में बैठा कर विमान को आकाश में ले जाता है । देवी सीता अपनी सहायता के लिए श्री राम और लक्ष्मण को पुकारती है लेकिन कोई भी उनकी सहायता कर पाने में समर्थ नहीं था।
रावण और जटायु का युद्ध
जब रावण सीता को पुष्पक विमान में ले जा रहा था तब सीता की मदद की गुहार वहां पर बैठे जटायु नाम के गिद्ध ने सुनी और वह सीता की सहायता करने के लिए रावण से युद्ध करने लगता है। बहुत समय तक रावण से लड़ते हुए रावण अपनी चंद्रहास खड़ग (तलवार) से जटायु का एक पंख काट देता है जिससे वह लुढ़कता हुआ जमीन पर आकर गिरता है और दर्द से कराहने लगता है। जब कुछ भी ना हो पाया तो सीता जी अपने पल्लू का एक टुकड़ा फाड़ कर अपने सारे जेवर उसमें बांधकर नीचे ऋषिमुख पर्वत पर फेंक देती हैं तथा फिर मदद की गुहार लगाते हुए कहती कि यदि उनके प्रभु श्रीराम उन्हें ढूंढते हुए आए तो कहना कि मुझे रावण उठा कर ले गया है।
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