वट सावित्री व्रत क्या है | Vat savitri vrat Katha in hindi

वट सावित्री व्रत क्या है | Vat savitri vrat Katha in hindi

 वट सावित्री व्रत कथा 

Vat savitri vrat Katha in hindi: हिंदू महिलाएं अपने पति की दीर्घायु कथा मंगल कामना के लिए वट सावित्री का व्रत करती है। इस व्रत में वट वृक्ष तथा देवी सावित्री की पूजा की जाती है। इससे सुहागन महिलाएं अपने पति के लिए दीर्घायु की कामना करते हुए ज्येष्ठ महीने की कृष्ण पक्ष की अमावस्या को यह व्रत रखती है। अपने पति की लंबी आयु, उन्नति और सौभाग्य के लिए सुहागन महिलाएं वट वृक्ष की पूजा करके सावित्री और सत्यवान की पुण्य कथा का पाठ करती है। 

क्यों रखा जाता है वट सावित्री का व्रत ?

वट सावित्री व्रत की मान्यता के अनुसार ज्येष्ठ महीने के शुक्ल पक्ष की अमावस्या तिथि को देवी सावित्री ने वट वृक्ष की पूजा करके अपने पति के प्राणों की रक्षा यमराज से की थी। माना जाता है कि वट वृक्ष में ब्रह्मा, विष्णु तथा महेश तीनों भगवानों का वास होता है। सावित्री और सत्यवान की इस कथा के बाद से ही वट सावित्री व्रत का प्रारंभ हुआ था। वट सावित्री के व्रत के बारे में अधिक जानने के लिए आपको सत्यवान और सावित्री की कथा को सुनना चाहिए । 


Vat Savitri Vrat Image
वट सावित्री व्रत कथा 

सत्यवान और सावित्री की कथा  

Vat Savitri Vrat Katha: सत्यवान और सावित्री की पुण्य कथा स्वयं भगवान शिव द्वारा माता पार्वती के आग्रह करने पर सुनाई गई थी। इस कथा में भगवान शिव बताते हैं कि एक अश्वपति नाम का राजा होता है जिसकी कोई संतान नहीं थी बहुत से उपाय के बाद अंत में वह देवी सावित्री की पूजा करके उन्हें प्रसन्न कर लेता है और तब उसे वरदान के रूप में देवी सावित्री ने एक दिव्य संतान होने का वरदान दिया। 

उसके कुछ ही समय बाद राजा के घर एक दिव्य कन्या का जन्म होता है । यह कन्या देखने में स्वयं किसी देवी का अंश लग रही थी। इसलिए राजा ने उस कन्या का नाम भी सावित्री रख दिया। धीरे-धीरे जब वह कन्या बड़ी होती गई तब राजा ओर प्रजा हमेशा यही सोचते थे कि वह कोई साधारण कन्या नहीं है। जब सावित्री विवाह के योग्य हो गई तो उसके गुणों और सुंदरता को देखकर राजा उसके लिए कोई योग्य वर खोजने में असमर्थ होता है तो वह अपनी पुत्री सावित्री को स्वयं ही कोई अच्छा वर चुनने का अधिकार दे देता है। 

कुछ सैनिक था मंत्रियों को लेकर सावित्री अलग-अलग स्थान पर जाने लगती हैं एक जंगल में वह देखती है कि एक सत्यवान नाम का युवक अपने नेत्रहीन पिता के साथ वन में रहता है। सावित्री मन ही मन में उसे नवयुवक को अपने वर के रूप में चुन लेती है तथा उससे विवाह की इच्छा रखती है । उसके बाद जैसे ही वह महल में लौटती है तो देव ऋषि नारद के द्वारा उनको बताया जाता है कि सावित्री ने जिस वर को चुना है। वह अल्पायु है और एक वर्ष के अंदर ही मृत्यु को प्राप्त हो जाएगा। यह सुनकर सावित्री नारद जी को कहती है कि वर केवल एक ही बार चुना जाता है और वह मैं चुन चुकी हूं। 

इसके बाद सत्यवान और सावित्री का विवाह हो जाता है । नारद के कथन के अनुसार सावित्री अपने पति सत्यवान के जीवन का एक एक दिन गिनने लगती है। अपने पति के मृत्यु से ठीक तीन दिन पहले से सावित्री व्रत का संकल्प कर लेती है। एक दिन जब सत्यवान और सावित्री जंगल में विचर रहे थे तब सत्यवान के सर में बहुत अधिक पीड़ा होने लगते हैं और सामने से तेज प्रकाश में सावित्री को स्वयं यमराज आते दिखाई देते हैं। सावित्री समझ जाती है कि उसके पति की मृत्यु अब निश्चित है । सत्यवान के प्राण निकालकर यमराज चलने लगते हैं तो सावित्री भी यमराज के पीछे-पीछे चल देती है । कई बार मना करने पर भी वह यमराज के पीछे ही चलती रहती है । सावित्री की पति धर्म ओर दृढ़ता को देखकर यमराज उससे प्रसन्न हो जाते हैं और वह उसे तीन बार मांगने को कहते हैं ।

पहले वरदान में सावित्री अपने ससुर के नेत्रहीनता को दूर करने को कहती हैं । दूसरे वरदान में वह अपने ससुर जी के खोए हुए साम्राज्य को वापस मांग लेती हैं । और तीसरे वरदान में वह चतुर्ता से यमराज से सत्यवान से 100 पुत्र उत्पन्न होने का वरदान मांग लेती है। हेमराज बिना देरी किए तथास्तु कह देते हैं। लेकिन कुछ ही देर बाद यह महाराज को आभास होता है कि यदि उसको सावित्री के तीसरे वरदान को पूरा करना है तो सत्यवान को जीवन दान देना पड़ेगा। अपने वचन का मान रखते हुए यमराज सावित्री के प्रति सत्यवान को प्राण दान दे देते हैं । उस समय वह वट वृक्ष के नीचे खड़े होते हैं इसलिए इस कथा का संबंध वट वृक्ष से गहरा होता है। तभी से लेकर अब तक सत्यवान सावित्री के अमर प्रेम का प्रतीक वट सावित्री व्रत सुहागन महिलाओं द्वारा अपने पति के लंबी आयु तथा उनकी अकाल मृत्यु से बचाने के लिए किया जाता है।

श्री बजरंग बाण सम्पूर्ण पाठ


एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ