विभीषण तथा श्रीराम की पहली भेंट | श्रीराम तथा समुंद्र का संवाद |वानर सेना का लंका प्रस्थान
राम सेतु का निर्माण | (सम्पूर्ण रामायण की कहानी )
अपने जलती हुई पूंछ की आग बुझाने के बाद बजरंगबली हनुमान अंतिम बार माता सीता से मिलने के लिए जाते हैं। माता सीता गहरी चिंता में डूबी हुई थी । जब से उन्हें खबर मिली थी कि रावण ने हनुमान की पूंछ में आग लगा देने का आदेश दिया है। इसलिए माता सीता ने अग्नि देव से प्रार्थना की थी कि वह हनुमान की पूंछ का एक बाल भी ना जलाएं। और हुआ भी यही, के अपने जलती हुए पूंछ से बजरंगबली हनुमान ने रावण की पूरी लंका जला दी लेकिन उनकी पूंछ का एक बाल भी नहीं जला।
राम सेतु निर्माण |
अतः हनुमान आकर माता सीता को प्रणाम करते हैं और श्री राम के लिए कोई अपना संदेश देने के लिए कहते हैं। माता सीता हनुमान को भेंट के प्रमाण के रूप में यह बात बताती है कि जब इंद्र के पुत्र जयंत ने एक कौवे का रूप लेकर उनके पैर पर चोट मारी थी तब श्रीराम ने कुशा के एक तिनके को मंत्र उपचार के द्वारा उसके पीछे छोड़ा था कि वह तीनों लोगों में घूम कर भी उससे बच नहीं पाया था। अंत में वह खुद श्री राम की शरण में आया तब उसके प्राण बचे थे और तब श्री राम ने उसे एक आंख से काना करके छोड़ दिया था।
श्रीराम को सीता से भेंट की शुभ समाचार मिलना
माता सीता का यह संदेश लेकर हनुमान जी महाराज से उड़ते हुए वापस आ जाते हैं तरण अंगद जामवंत और वानर दल के साथ आकर सीता माता से भेंट की सुखद समाचार श्री राम को सुनाते हैं। यह सुनकर श्रीराम आत्म विभोर हो जाते है वह हनुमान को अपने हृदय से लगा लेते है और कहते है, हनुमान आज तुमने मेरा सबसे प्रिय कार्य किया है। अगर तुम सीता का पता नही लगाते तो अपने कुल की मर्यादा की रक्षा न कर पाने के कारण मैं अपने पूर्वजों को मुंह दिखाने के काबिल नही रहता । आज केवल तुम्हारे कारण ही मुझे सीता के सकुशल होने का संदेश मिला है। अब बिना समय गवाए में लंका जाकर उस दुष्ट, पापी रावण को उसके कुकर्मों का दंड दूंगा। तब श्री राम सुग्रीव को निर्देश देते हैं कि आप अपनी सेना को एकत्रित करिए हम कल के समय लंका के लिए कूच करेंगे। सुग्रीव तथा अन्य वानर श्रेष्ठ श्रीराम से आग्रह करते हैं कि आपको ही हमारी सेना के सेनानायक बनना चाहिए । सुग्रीव के आग्रह पर श्री राम वानर सेना का सेनानायक बनाना स्वीकार करते हैं।
वानर सेना का लंका के लिए प्रस्थान
अगले दिन श्रीराम तथा सुग्रीव की पूरी वानर सेना बड़े जोश के साथ लंका के लिए कूच करती है। "हर हर महादेव" के नारे लगाते हुए सारी सेना उत्साह तथा उमंग के साथ आगे बढ़ती है। लंका के लिए प्रस्थान के कुछ ही दिनों बाद सुग्रीव की पूरी वानर सेना समुद्र तट पर पहुंच जाते हैं जहां से लंका तथा उनके बीच केवल सौ योजन का समुद्र लहरा रहा था। समुद्र की लहरों को देखकर जामवंत जी श्री राम से कहते हैं कि, हे प्रभु। सीता माता की खोज के समय भी हम इसी स्थान पर आकर ठहर गए थे । उस समय बजरंगबली हनुमान की शक्तियों के कारण हमारा कार्य सिद्ध हो गया था, लेकिन अब परिस्थिति अलग है क्योंकि इतनी बड़ी वानर सेना का एक साथ समुद्र पार करना असंभव है।
वहीं दूसरी ओर लंका में रावण का छोटा भाई विभीषण भरी सभा में रावण को यह सन्मति देने का प्रयास करता है कि वह देवी सीता को श्री राम के पास आदर के साथ पहुंचा दें, इसी में सबकी भलाई है । इस पर रावण उसकी हंसी उड़ाते हुए उसका अनादर करता है तथा लात मारकर उसका मुकुट गिरा देता है। विभीषण का मुकुट गिरते ही पूरी सभा उसपर हंसने लगती हैं तब विभीषण कहता है कि, मैं तुम्हारे ऊपर मंडराते हुए काल को देख रहा हूं। स्वयं महाराज द्वारा मेरा समान मेरी मृत्यु के समान है। इसलिए मैं आज से लंका को छोड़कर जा रहा हूं।
श्रीराम तथा विभीषण की भेंट
यह कहकर विभीषण अपनी माता से भेंट करके श्रीराम के शरण में आने का फैसला करते हैं तथा वह अपने चार मंत्रियों के साथ वायु मार्ग से होते हुए समुंदर के इस पार बसी श्रीराम के छावनी में आते हैं उनसे शरण मांगते हैं। शरणागत वत्सल श्री राम अपने शत्रु के छोटे भाई को भी अपनी शरण में लेते हैं, और उसे यह वचन देते हैं कि उसे रावण के वध के बाद लंका का अगला राजा बनाएंगे। तब वही समंदर किनारे श्री राम विभीषण का राज्य अभिषेक करते हैं। उसके बाद सबसे बड़ी जो समस्या थी जॉकी 100 योजन का समुद्र कैसे पार किया जाए तो विभीषण यह सलाह देते हैं कि उन्हें समुद्र देव से प्रार्थना करनी चाहिए कि वह उनकी सेना को लंका तक जाने का रास्ता दे।तब श्री राम सभी को कहते हैं कि, हम समुद्र देव से रास्ता देने के लिए प्रार्थना करेंगे। लेकिन लक्ष्मण जी को यह अच्छा नहीं लगा, उन्होंने कहा कि भैया, हमें रास्ता मांगने की जरूरत नहीं है क्योंकि यदि आप आदेश करेंगे तो समुद्र को वैसे भी हमें रास्ता देना ही पड़ेगा । लेकिन श्री राम लक्ष्मण की इस सलाह को अपनी मर्यादा के कारण टाल देते हैं क्योंकि श्रीराम जानते थे कि समुद्र की मर्यादा भगवान की तरह होती है जिससे वह बंधे होते है।
श्रीराम द्वारा समुंद्र की आराधना
श्री राम समुद्र देव की आराधना करने के लिए किनारे पर बैठ जाते हैं क्योंकि उन्हें उम्मीद थी कि समुद्र उनकी आराधना से प्रसन्न होकर उनको सेना सहित लंका तक जाने का मार्ग अवश्य देंगे। लेकिन 3 दिन तक लगातार प्रार्थना के बाद भी समुद्र की तरफ से कोई प्रतिक्रिया नहीं हुई । तो श्री राम को इस बात पर क्रोध आ जाता है और वह समुद्र देव को क्रोधित होकर कहते हैं। हे समुद्र, मैंने बिना अन्य जल ग्रहण किए 3 दिन तक आप की आराधना की है लेकिन तब भी आपने मेरी विनती स्वीकार नहीं करते हुए अपनी लहरों के शोर द्वारा अपने अहंकार को प्रकट किया है । इसलिए अब मैं अपने तीखे और अग्नि वर्षक दिव्यास्त्र के प्रयोग से आपका सारा जल पाताल तक सुखा दूंगा। यह कहकर श्री राम अपने धनुष पर बाण चढ़ा लेते हैं इतने में ही त्राहिमाम, त्राहिमाम करते हुए समुद्र देव आते हैं और श्रीराम से क्षमा मांगने लगते हैं और कहते हैं कि हे प्रभु मुझे क्षमा करें ।
श्रीराम तथा समुंद्र का संवाद
हे प्रभु मुझे क्षमा करें। लेकिन मैं आपको अपने जल में से रास्ता नहीं दे सकता क्योंकि समुद्र की एक मर्यादा होती है जो कि स्वयं अपने ही अपने नारायण अवतार में निर्धारित की थी। इसलिए हे दया निधान, कृपया करके आप अपनी वानर सेना को लंका तक पहुंचाने के लिए मेरे ऊपर पत्थरों से एक सेतु बना सकते हैं। आपकी सेना में नल और नील नाम के दो मंत्री हैं जिनमें से एक विश्वकर्मा जी का पुत्र है । वह आपकी समुंदर के ऊपर सेतु बनाने में सहायता कर सकता है । अतः सभी वानस अगर पत्थर के ऊपर श्री राम लिखकर समुद्र में छोड़ेंगे तो वह पत्थर तैरने लगेगा और मैं स्वयं उन पत्थरों को बिखरने से रोकूंगा तथा एक कतार में जकड़ कर रखूंगा। इस तरह कुछ ही समय में समुंदर पर आप सेतु बनाने में सफल हो पाएंगे जिस पर चलकर आपकी पूरी वानर सेना लंका तक पहुंच जाएगी।
सागर पर सेतु निर्माण
श्री राम को समुद्र देव यह परामर्श अच्छा लगता है इसलिए उन्होंने महाराज सुग्रीव को आदेश दिया कि वह अपनी सेना को आदेश दे कि पत्थरों से एक सेतु निर्माण का कार्य जल्दी ही आरंभ करें। सभी वानर सेतु निर्माण में लग जाते हैं जिसमे सभी वानर सैनिक पत्थर पर श्रीराम का नाम लिखकर समुद्र में छोड़ रहे थे तथा श्रीराम नाम के कारन सभी पत्थर पानी पर तैर रहे थे। सेतु निर्माण पूरा होने तक श्री राम वही समुंदर किनारे एक शिवलिंग स्थापित करके भगवान शिव की आराधना करने लगते हैं । केवल 5 दिन की परिश्रम करने के बाद वानर सेना सौ योजन समुद्र के ऊपर एक विशाल सेतु के निर्माण में सफल होती है। जब इसकी सूचना लंका के लोगों को लगती है तो उनके होश उड़ जाते हैं । क्योंकि कोई भी यह कल्पना नहीं कर सकता था कि समुंदर को कोई बांध सकता है । लेकिन श्री राम की सेना में मात्र 5 दिनों में यह असंभव कार्य संभव करके दिखा दिया।
रामेश्वर शिवलिंग
श्रीराम द्वारा समुंद्र के किनारे पर स्थापित किए गए शिवलिंग को रामेश्वर के नाम से जानते हैं। रामेश्वर का अर्थ होता है राम के जो ईश्वर है। वह रामेश्वरम है। लेकिन भगवान शिव कहते हैं कि रामेश्वर का अर्थ होता है की राम जिसके ईश्वर है।
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