राम हनुमत मिलन । राम सुग्रीव की मित्रता | Ram Sugreev Maitri Story In Hindi

राम हनुमत मिलन । राम सुग्रीव की मित्रता | Ram Sugreev Maitri Story In Hindi

हनुमान और राम की पहली भेंट । श्रीराम तथा सुग्रीव की मित्रता 

Hanumat Milan Story in Hindi | Ram Sugreev ki Mitrata Hindi
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ऋषि मतंग के आश्रम में माता शबरी से भेंट करने के पश्चात श्री राम और लक्ष्मण पंपा सरोवर के दक्षिण दिशा की तरफ ऋषि मुख पर्वत की ओर महाबली वानर सुग्रीव की खोज में चल पड़ते है। ऋषि मुख पर्वत पर पहुंचने पर वे दोनों भाई महाबली सुग्रीव का निवास स्थान खोजने लगते हैं इसी दौरान महाबली सुग्रीव का एक गुप्तचर उन्हें छिपकर झाड़ियों में से देख रहा होता है। वह गुप्तचर वानर यह बात जाकर महाबली सुग्रीव को बताता है कि ऋषि मुख पर्वत की ओर दोनों व्यक्ति आ रहे हैं जिनका बाना किसी ऋषि या मुनियों के जैसा है लेकिन उनके कंधे वीरों जैसे हैं और कंधों पर धनुष बाण भी है। 
राम सुग्रीव मित्रता | Ram Sugreev Maitri 

यह जानकारी मिलने के पश्चात सुग्रीव के मंत्रीगण जिनमे एक ऋषभ जामवंत, एक वानर गुप्तचर, सेनापति वानर नल और नील के साथ साथ महाबली अजनीपुत्र हनुमान भी थे। वे इस बात पर चर्चा करते हैं कि दो व्यक्ति धनुष बाण लिए ऋषि मुख पर्वत की और क्यों आ रहे हैं कहीं वे सुग्रीव के भाई और शत्रु वानर राज बाली के गुप्तचर तो नही। तब उनमें से सबसे वृद्ध जामवंत जी कहते है की यदि वे गुप्तचर होते तो उनके कंधे पर धनुष बाण नही होते । कुछ का यह मानना था कि वे दो व्यक्ति राजा बाली के विशेष सैनिक हो सकते है जो सुग्रीव को मारने के उद्देश्य से आए हो।

बहुत देर तक मंत्रणा करने के बाद जब कोई निष्कर्ष नहीं निकल पा रहा था तब सुग्रीव ने चतुर और बुद्धिमान महाबली हनुमान से सहायता मांगी, उस समय महाबली हनुमान श्री राम के ध्यान में ही मग्न थे। जब सारी बात हनुमान जी को बताई गई तो उन्होंने निश्चय किया कि वे अपना रूप बदलकर उन दो अनजान व्यक्ति के पास जाएंगे उनका परिचय जानकर ही आगे की कार्यवाही करेंगे।

हनुमत मिलन । राम-लक्ष्मण से हनुमान की भेंट

तब हनुमान जी ब्राह्मण पंडित का रूप धारण करके श्री राम और लक्ष्मण के पास जाते हैं। वहां जाकर हनुमान जी राम और लक्ष्मण के पूछते हैं कि आप कौन हैं और आपका परिचय क्या है। तब लक्ष्मण जी भी हनुमान जी से पूछते हैं कि हमें महाराज सुग्रीव के पास जाना है। तब हनुमान उनसे पूछेंगे आपको सुग्रीव के पास क्यों जाना है क्योंकि मैं उनका कुल पुरोहित हूं आप मुझे बताइए। बहुत देर तक जब हनुमान जी और लक्ष्मण जी बहस कर रहे थे की पहले वे एक दूसरे के सवालों का उत्तर दे। अतः अंत में लक्ष्मण जी बताते है की हम अयोध्या के राजकुमार है, मेरा नाम लक्ष्मण है और ये में बड़े भाई श्रीराम है। श्री राम का नाम सुनते ही हनुमान जी को अपने आराध्य श्री रामचंद्र ध्यान आते हैं जिनकी वे वर्षों से भक्ति कर रहे हैं, वही श्री रामचंद्र उनके सामने खड़े हैं। श्री राम का परिचय पाकर हनुमान जी अपनी चपलता के लिए क्षमा मांगते हैं तथा भावविभोर होकर अपना परिचय बताते हैं। 

हनुमान जी अपने वास्तविक रूप में आकर कहते है, हे राम, मैं आपका परम भक्त अंजनी पुत्र हनुमान हूं और राजा सुग्रीव के आदेश पर आपको अनजान मानकर आपका परिचय पाने के लिए यह ब्राह्मण का वेश बनाकर आया था। तब बातों ही बातों में श्री राम और लक्ष्मण जी भी अपनी यात्रा का सारा वृत्तांत हनुमान जी को बताते है कि उनको माता शबरी ने भेजा था और वे दोनो सुग्रीव से मित्रता करने आए हैं। रावण द्वारा सीता हरण की बात सुनकर हनुमान जी सुग्रीव की आत्मकथा भी श्री राम लक्ष्मण को बताते हैं कि हमारे राजा सुग्रीव की पत्नी भी उनसे छिन चुकी है अतः वह आपकी वेदना को समझ सकते हैं जिसे आप दोनों एक दूसरे के लिए कल्याणकारी सिद्ध होंगे।

राम और सुग्रीव की भेंट । राम सुग्रीव की मित्रता

तब हनुमान जी राम और लक्ष्मण को सुग्रीव के निवास स्थान पर चलने के लिए कहते हैं लेकिन वहां का रास्ता काफी दुर्गम होने के कारण हनुमान जी विराट रूप बनाकर श्री राम लक्ष्मण को अपने कंधों पर बिठाकर हवा में उड़ते हुए सुग्रीव के पास ले जाते हैं। श्री राम लक्ष्मण के सुग्रीव से भेंट होने के पश्चात वे दोनों एक दूसरे की आत्मकथा बताते हैं तथा एक दूसरे की सहायता करने का वचन देते हैं। वहीं पर हनुमान जी लकड़ी द्वारा अग्नि प्रकट करके राम और सुग्रीव को मित्रता की शपथ लेने के लिए कहते हैं। सुग्रीव और श्री राम की मित्रता होने के पश्चात सुग्रीव श्रीराम से कहते हैं कि हे मित्र हनुमान ने हमें आपकी पत्नी सीता के हरण का सारा वृतत बताया है इसलिए मैं माता सीता की खोज करने में आपकी पूरी सहायता करूंगा जब आपका कार्य सफल हो जाएगा तो मित्रता है तो आपसे भी अपना कार्य सिद्ध करवाने की आशा में रखता हूं।

सुग्रीव के बातें सुनकर श्री राम कहते हैं कि हे मित्र, मित्रता का अर्थ यह नहीं है कि पहले आप मेरा कार्य करें और बाद में मैं आपका कार्य करूं। मैंने आपसे मित्रता की है इसलिए मेरा पहला धर्म यही है कि मैं पहले आपकी समस्या तथा कष्टों का समाधान करूं। हनुमान जी ने आपके भाई बाली और आपकी शत्रुता के बारे में मुझे पहले ही बता दिया है और बाली ने आप के साथ अन्याय किया है इसलिए आपका मित्र होने के नाते पहले मैं आपको आपकी पत्नी तथा खोया हुआ राज्य वापस दिलाऊंगा । मैं आपको यह वचन देता हूं की बाली कल का सूर्यास्त नहीं देख पाएगा। और अंत में श्री राम कहते हैं कि मेरे रघुवंश के यहां परंपरा रही है कि "प्राण जाए पर वचन ना जाए" इसलिए मैं अपने प्राण देकर भी अपने वचन को निभाऊंगा। 

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