लक्ष्मण द्वारा अतिकाय का वध । लक्ष्मण तथा अतिकाय का युद्ध रावण के पुत्र अतिकाय, देवांतक, नरांतक, त्रिशरा, दारुक का वध ( रामायण सम्पूर्ण कहानी हिंदी में )
कुंभकरण की मृत्यु की खबर सुनकर लंकापति रावण अत्यंत व्याकुल हो जाता है। रावण को कुंभकरण की मृत्यु का विश्वास नहीं होता उसे यह असंभव सा लगता है। रावण कहता है कि यह सत्य नहीं हो सकता, कुंभकरण स्वयं मृत्यु का दूसरा नाम है। ब्रह्मा, विष्णु, महेश भी कुंभकरण की मृत्यु का कारण नहीं बन सकते फिर उसकी मृत्यु कैसे संभव हुई। अपने छोटे भाई कुंभकरण के मृत्यु से रावण बहुत अधिक दुखी होता है और उसे लगता है कि शायद असुर जाति का विनाश निश्चित है, तब रावण का जेष्ठ पुत्र इंद्रजीत अपने पिता को धीरज बंधाते हुए कहता है। "नही पिताजी, केवल काका कुंभकरण के मृत्यु से असुर जाति का विनाश निश्चित हो यह आवश्यक नहीं है। कृपा करके मुझे युद्ध में जाने की आज्ञा दीजिए, मैं आज ही राम और लक्ष्मण के जीवन का अंत करके इस युद्ध को समाप्त कर दूंगा।
अतिकाय का वध |
वही सभा में मौजूद रावण के सभी पुत्र उसका हौसला बनाते हुए कहते हैं कि, पिताजी हम आखरी समय तक आपके साथ युद्ध लड़ेंगे और निश्चित ही जीत हमारी होगी। रावण का पुत्र अतिकाय, देवांतक, नरांतक, त्रिशरा, दारुक और निकुंभ सभी युद्ध में जाने का निश्चय करते हैं। और रावण को हिम्मत बंधाते हुए कहते है की, "पिताजी " हम सभी भाई मिलकर आज के युद्ध का निर्णय कर देंगे। रावण की दूसरी पत्नी धन्य मालिनी का पुत्र अतिकाय कहता है कि आज वह राम के छोटे भाई लक्ष्मण का वध करके राम को अपने छोटे भाई की मृत्यु के दुख का एहसास दिलाएगा। जैसे उसने कुंभकरण काका को मारकर आपको दुःख पहुँचाया है।
यह कहकर रावण के सभी पुत्र अतिकाय, देवांतक, नरांतक, त्रिशरा, दारुक और निकुंभ आदि युद्ध भूमि के लिए प्रस्थान करते हैं। केवल इंद्रजीत रावण के पास रह जाता है, क्योंकि वह रावण का सबसे प्रिय पुत्र था। जिसे रावण खोने से डरता था। युद्ध भूमि में जाते ही अतिकाय लक्ष्मण को ललकारने लगता है। अतिकाय की ललकार सुनकर लक्ष्मण जी भी आवेश में आकर उसके सामने जाने लगते हैं लेकिन तभी विभीषण जी उन्हें सूचित करते हैं कि भैया लक्ष्मण, अतिकाय बाकी योद्धाओं की तरह सामान्य योद्धा नहीं है। वह भगवान शिव से धनुर्विद्या प्राप्त कर चुका है और वह महाप्राक्रमी भी है। उसके बाद दोनों सेनाओं में फिर से युद्ध छिड़ जाता है। लक्ष्मण अतिकाय से युद्ध करने के लिए जा ही रहे होते हैं कि उससे पहले उनकी मुठभेड़ दारुक से हो जाती है। लक्ष्मण जी एक ही बाण में दारूक का सर धड से अलग कर देते हैं जो कि अतिकाय के पास जाकर गिरता है। यह देखकर अतिकाय लक्ष्मण पर और भी अधिक क्रोधित हो जाता है और लक्ष्मण के साथ युद्ध करने लगता है।
रावण पुत्र देवांतक का वध
युद्ध में आया रावण-पुत्र देवांतक महाबली हनुमान के सामने आ जाता है और दोनो के बीच में मल्लयुद्ध छिड़ जाता है। रावण का पुत्र देवांतक बहुत ही शक्तिशाली था क्योंकि उसने देवताओं की शक्ति का अंत किया था, इसलिए उसका नाम देवांतक पड़ा था। लेकिन महाबली हनुमान की शक्तियों से अपरिचित था और इसलिए हनुमान जी उसे पछाड़ते हुए कभी गदा से तो कभी मुक्को से उसकी हालत खराब कर देते हैं। और अपनी मुस्तिका के प्रहार से रावण के पराक्रमी पुत्र देवांतक का वध कर देते हैं।
रावण पुत्र नरांतक का वध
युद्ध भूमि में अंगद और रावण के पुत्र नरांतक में घमासान युद्ध शुरू हो जाता है दोनों योद्धा एक दूसरे पर प्रहार करने लगते हैं। नरांतक अपनी तलवार से अंगद के ऊपर प्रहार पर प्रहार किये जा रहा था। लेकिन बाली पुत्र अंगद बड़ी ही कुशलता साथ उसके सभी प्रहारों को अपनी शक्तिशाली गधा से विफल कर रहे थे और साथ ही में मौका पाकर अपनी गदा से उस को धूल चटा रहे थे। काफी समय तक युद्ध के पश्चात अंत में नरांतक भूमि पर गिर जाता है और अंगद उस पर लगातार वार पर वार करते हैं जिससे उसकी मृत्यु हो जाती है।
रावण पुत्र त्रिश्रा, निकुंभ तथा सेनापति अकम्पन का वध
जहां दोनों सेनाओं में युद्ध चल रहा था वहीं दूसरी ओर वानर राज सुग्रीव का सामना रावण की सेना के सेनापति अकंपन से हो जाता है। सुग्रीव क्रोध में अपनी गदा के एक ही प्रकार से सेनापति अकंपन का वध कर देते हैं। वहीं पर हनुमान जी रावण पुत्र त्रिश्रा से मल्लयुद्ध में लगे हुए थे। त्रिश्रा अपनी तलवार से महाबली हनुमान पर वार करने का प्रयास करता है लेकिन महाबली हनुमान उसके हाथ को पकड़ लेते हैं और उसकी तलवार को छीन कर उसी तलवार के वार से उसका वध कर देते है। ठीक इसी समय बाली पुत्र अंगद और रावण के पुत्र निकुंभ दोनों के बीच युद्ध चल रहा था जिसमें बाली पुत्र अंगद रावण पुत्र निकुंभ का वध कर देते हैं।
अतिकाय तथा लक्ष्मण का युद्ध
रावण का पुत्र अतिकाय अन्य योद्धाओं की तुलना में अधिक पराक्रमी तथा शक्तिशाली था। विभीषण जी द्वारा बताए गए कथा के अनुसार अतिकाय पिछले जन्म में बहुत अधिक शक्तिशाली राक्षस था। तब उसने ब्रह्मदेव की तपस्या करके बहुत अधिक शक्ति अर्जित कर ली थी । जिससे उसने अपनी इच्छा मृत्यु का वरदान ब्रह्मदेव से मांग लिया था। और तब उनके साथ भगवान विष्णु ने माया का उपयोग करके उनसे उन्हीं की मृत्यु का मार्ग जानकर उनका वध किया था। उसी तरह आज भी अतिकाय उतना ही शक्तिशाली है इसलिए वह लक्ष्मण जी को परामर्श देते हैं कि अतिकाय के साथ युद्ध करने के लिए साधारण तीरों का नहीं बल्कि दिव्यास्त्रों का प्रयोग करना चाहिए।
अतिकाय तथा लक्ष्मण दोनों शूरवीर योद्धा धनु विद्या में निपुण थे। इसलिए अतिकाय के साथ युद्ध करने के लिए लक्ष्मण जी को अपने सबसे श्रेष्ठ तीरों का उपयोग करना पड़ रहा था। दोनों के बीच युद्ध बहुत लंबे समय तक चलता रहा। इसका कोई परिणाम नहीं निकल रहा था। तब सूर्यास्त होने लगता है और असुर होने के कारण अतिकाय की शक्ति और भी अधिक बढ़ने लगती है। सूर्यास्त के बाद अपनी बढ हुई शक्तियों के बल पर अतिकाय अपने रथ को आकाश में लेकर चला जाता है और वहीं से लक्ष्मण पर तीरों की बौछार करने लगता है। उसके आकाश में होने से लक्ष्मण जी के तीरों की गति उसकी और धीमी हो रही थी।
अतिकाय का वध
यह देखकर महाबली हनुमान युद्ध में कूद पड़ते हैं और लक्ष्मण जी को अपने कंधों पर बैठा कर उन्हें आकाश में अतिकाय के समान उंचाई पर ले जाते है। लेकिन तब भी लक्ष्मण जी के तीरों का अधिकार पर कोई असर नहीं हो रहा था। तभी ब्रह्मदेव प्रकट होते हैं और लक्ष्मण जी को बताते हैं कि अतिकाय की मृत्यु केवल ब्रह्मास्त्र से ही संभव है इसलिए, हे लक्ष्मण" आपको ब्रह्मास्त्र का प्रयोग करना चाहिए। ब्रह्म देव का यह कथन सुनकर लक्ष्मण जी ब्रह्मास्त्र बाण का संधान करते हैं और उसे अतिकाय पर चला देते है । ब्रह्मास्त्र लगते हैं रावण पुत्र अतिकाय आकाश से सीधा नीचे गिरता है और मृत्यु को प्राप्त हो जाता है। अतिकाय के साथ अपने इतने पुत्रो की मृत्यु की खबर सुनकर रावण शोक सागर में डूब जाता है।
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