लक्ष्मण-मेघनाद का युद्ध । राम-लक्ष्मण को नागपाश में बांधना | Lakshman or Meghnad ka Yudhh

लक्ष्मण-मेघनाद का युद्ध । राम-लक्ष्मण को नागपाश में बांधना | Lakshman or Meghnad ka Yudhh

मेघनाद और लक्ष्मण का युद्ध।  रामायण सम्पूर्ण कहानी हिंदी में 

मेघनाद द्वारा राम - लक्ष्मण को नागपाश में बांधना 

एक ही दिन में अपने भाई कुंभकरण और अतिकाय, देवान्तक, नरान्तक, त्रिशिरा, निकुम्भ जैसे वीर पुत्रों की मृत्यु के बाद रावण शौक सागर में डूब जाता है। रावण हैरान होता है कि अतिकाय  जैसे महाबली योद्धा के साथ-साथ उसके इतने सारे पुत्रों का वध कोई कैसे कर सकता है। जिस लंकापति रावण के नाम से देवता असुर, नाग, किन्नर, मानव, सभी कांपते थे। आज वही दो मानव और कुछ वानर उनके नगर में आकर उन पर ही भारी पड़ रहे हैं। जिन्होंने लंका के अधिकतर सेनानियों को परास्त  कर दिया है। लेकिन तब रावण के नाना माल्यवान  और उसका पुत्र इंद्रजीत उसे धीरज बंधाते हैं। रावण को हौसला देते हुए और प्रतिशोध की अग्नि में जलता हुआ मेघनाथ रावण को कहता है की -

लक्ष्मण-मेघनाद का युद्ध
लक्ष्मण-मेघनाद का युद्ध

मुझे युद्ध में जाने की आज्ञा दीजिए पिताजी " मेरी भुजाएं अपने भाइयों और काका कुंभकरण के वध का प्रतिशोध लेने के लिए फड़क रही है। मैं अपने सबसे घातक अस्त्रों  को लेकर युद्ध भूमि में जाऊंगा और इस युद्ध को आज ही समाप्त कर दूंगा। जिस लक्ष्मण ने मेरे भाइयों का वध किया उसको आज मौत की गोद  में सुला कर ही आऊंगा। इंद्रजीत रावण को अति प्रिय था इसलिए रावण स्वयं युद्ध में जाने की बात कहता है । लेकिन उसके नाना माल्यवान जी रावण को परामर्श देते हैं कि जब तक सेना में एक भी योद्धा जीवित हो तब तक स्वयं राजा का युद्ध में जाना उचित नहीं होता। इंद्रजीत एक परम शक्तिशाली होता है, उसे युद्ध में जाने की आज्ञा दीजिए वह निश्चित ही आपको निराश नहीं करेगा। रावण अपने नाना माल्यवान जी का परामर्श मान लेता है और अपनी विशाल सेना के साथ अपने पुत्र इंद्रजीत को युद्ध में जाने की आज्ञा देता है।

इंद्रजीत का युद्ध भूमि में प्रवेश 

लंका की बची हुई सेना लेकर इंद्रजीत युद्ध भूमि में आता है और आते ही अपने धनुष की प्रत्यंचा की डंकार  बजाता है। उसके धनुष की प्रत्यंचा की डंकार से आसमान में बिजली कड़कने लगती है। इंद्रजीत लक्ष्मण को ललकारने लगता है और कहता है कि मेरे भाई अतिकाय का वध करने वाला लक्ष्मण कहां है?  आज मैं अपने सभी भाइयों की मृत्यु का प्रतिशोध लेकर रहूंगा। लेकिन तभी सुग्रीव इंद्रजीत को रोक लेता है और उससे युद्ध करने के को कहता है लेकिन इंद्रजीत सुग्रीव का उपवास करते हुए उसे बड़ी सरलता से दूर फेंक देते हैं। उसके बाद बजरंगबली हनुमान भी इंद्रजीत से युद्ध करने के लिए सामने आते हैं लेकिन इंद्रजीत उस समय उन पर भी भारी पड़ने लगते। तब हुंकार भरते हुए इंद्रजीत कहता है कि क्या तुम्हारे लक्ष्मण मैं साहस नहीं है, मुझ से युद्ध करने का। कहां है लक्ष्मण?, क्या वह मेरे सामने आने से डरता है? । यदि मृत्यु से इतना ही डर लगता है तो दोनों भाई मुंह में तिनका दबाकर मेरे सामने आत्मसमर्पण कर दो।

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इंद्रजीत की यह ललकार सुनकर लक्ष्मण भी आवेश में आकर श्री राम से युद्ध में जाने की आज्ञा मांगते हैं। तब विभीषण जी लक्ष्मण जी को सावधान करते हुए सतर्क रहने के लिए कहते हैं, की भैया लक्ष्मण, इंदरजीत एक मायावी तथा विकट योद्धा है। वह हर प्रकार की असुर विद्या में कुशल है। उससे  युद्ध करने के लिए आपको अपनी पूरी शक्ति से युद्ध करना होगा। इंद्रजीत युद्ध जीतने के लिए हर तरीके का प्रयोग करता है चाहे उसे छल भी करना पड़े। विभीषण का परामर्श सुनकर लक्ष्मण जी रणभूमि में इंद्रजीत के सामने आ जाते हैं।

लक्ष्मण और मेघनाद का युद्ध। लक्ष्मण और इंद्रजीत का युद्ध 

तब दोनों योद्धाओं में घमासान युद्ध छिड़ जाता है। लक्ष्मण जी अपने घातक बाणों  द्वारा इंद्रजीत पर प्रहार करते हैं लेकिन इंद्रजीत भी धनुर्विद्या में और अस्त्रों के ज्ञान में पूर्णतया कुशल था।  इसलिए वह लक्ष्मण के सभी बाणों को काट देता है। लक्ष्मण और इंद्रजीत दोनों में परस्पर  युद्ध चलता रहता है।  बहुत समय तक जब इंद्रजीत लक्ष्मण से जीत नहीं पा रहा था । तब वह अपनी मायावी विद्या का प्रयोग करके युद्ध करने लगता है और अपने रथ से अदृश्य होकर आसमान में विचरने लगता है। उसे युद्ध करते समय लक्ष्मण जी विचलित हो जाते हैं और वह समझते हैं कि मेघनाथ युद्ध से गायब होकर कहीं भाग गया है। तब लक्ष्मण जी श्री राम के पास वापस चले जाते हैं। लेकिन तभी मेघनाथ जोर-जोर से हंसने लगता है उसकी हंसी आसमान में गूंज रही  थे लेकिन मेघनाद तब भी दिखाई नहीं दे रहा था।  

श्रीराम - लक्ष्मण को नागपाश में बांधना 

इंद्रजीत द्वारा अदृश्य होकर युद्ध करने के कारण श्री राम लक्ष्मण की सहायता के लिए युद्ध भूमि में चले आते हैं। तभी अचानक अदृश्य रहते हुए इंद्रजीत अपने धनुष से नागपाश अस्त्र का संधान करके श्रीराम और लक्ष्मण पर छोड़ देता है। नागपाश के प्रहार से श्री राम और लक्ष्मण दोनों नागपाश से उत्पन्न जहरीले नागों में बंध जाते हैं और मूर्छित हो जाते हैं। इंद्रजीत जानता था कि नागपाश अस्त्र दवारा किसी का भी अंत किया जा सकता है और नागपाश से मुक्त होना असंभव है। इसलिए श्री राम लक्ष्मण को नागपाश में बांध कर इंद्रजीत सोचता है कि अब वह युद्ध जीत चुका है इसलिए वह अपनी सेना को युद्ध से वापिस जाकर जीत का उत्सव मनाने का आदेश  देता है और उस दिन का युद्ध वहीं समाप्त हो जाता है।

राम-लक्ष्मण को नागपाश में बांधना

इंद्रजीत दवारा श्री राम लक्ष्मण को नागपाश में बांधने की खबर सुनकर रावण हर्षोल्लास से भर जाता है और अपने पुत्र इंद्रजीत का अभिनंदन करता है। रावण  को भी लगता है कि आज वह युद्ध को जीत चुका है अब कुछ ही समय में नागपाश में श्री राम और लक्ष्मण अपना दम तोड़ देंगे और यह युद्ध यहीं पर समाप्त हो जाएगा।

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