हनुमान - भरत मिलाप | हनुमान द्वारा संजीवनी लाना | लक्ष्मण मूर्छा का टूटना | kalnemi rakshash ka vadh

हनुमान - भरत मिलाप | हनुमान द्वारा संजीवनी लाना | लक्ष्मण मूर्छा का टूटना | kalnemi rakshash ka vadh

हनुमान द्वारा कालनेमि राक्षस का वध  हनुमान - भरत का संवाद 

लक्ष्मण मूर्छा का टूटना ( रामायण सम्पूर्ण कहानी हिंदी में )

शक्ति लगने से लक्ष्मण जी मूर्छित हो जाते हैं तथा वैद्यराज शुषैण के कहने पर हनुमान जी संजीवनी बूटी लाने के लिए प्रस्थान करते हैं। इसकी सूचना रावण को उसके गुप्तचरो द्वारा लगती है कि हनुमान लक्ष्मण के लिए अमृत संजीवनी लेने के लिए द्रोणागिरी पर्वत पर जा रहा है। यह सुनकर इंद्रजीत कहता है कि द्रोणागिरी पर्वत पृथ्वी के दूसरे छोर पर है जहां से एक रात में संजीवनी लेकर लौटना असंभव है, तो हमें चिंता करने की आवश्यकता नहीं है पिता जी। लेकिन रावण कहता है कि इंद्रजीत, तुम शायद अब तक हनुमान की शक्ति को नहीं पहचान पाए  हो,  उस वानर के लिए कुछ भी असंभव नहीं है। इसलिए हमें एक प्रयत्न अवश्य करना चाहिए। तब रावण हनुमान को रोकने के लिए कालनेमि राक्षस के पास जाता है। कालनेमि राक्षस अत्यंत मायावी था। छल बल में उसका कोई मुकाबला नहीं था. इसलिए रावण कालनेमि के पास जाकर कहता है कि हनुमान द्रोणागिरी पर्वत पर लक्ष्मण के लिए संजीवनी बूटी लेने के लिए गया है।  यदि वह है सूर्य उदय होने से पहले संजीवनी लेकर आ गया तो लक्ष्मण के प्राण बच जाएंगे और हमारे शत्रु जी उठेगा। 

हनुमान द्वारा कालनेमि राक्षस का वध

रावण द्वारा कालनेमि को भेजना 

तब रावण कहता है कि कालनेमि तुम अत्यंत मायावी हो और छल करने में तुम्हारा कोई मुकाबला नहीं है। तुम्हें केवल इतना करना है कि किसी भी तरह करके तुम हनुमान को रास्ते में रोक लो और अगर यह भी ना कर सको तो केवल इतना करो कि जिससे हनुमान सूर्योदय से पहले संजीवनी लेकर ना लौट पाए।

रावण का आदेश  मानकर कालनेमि तुरंत  हनुमान को रोकने के लिए प्रस्थान करता है। हनुमान जी से पहले पहुंच कर वह बीच मार्ग में ही एक स्थान पर अपनी मायावी विद्या से एक कुटिया का निर्माण करता है, तथा खुद एक ऋषि के वेश धारण कर लेता है। हनुमान जी को रास्ते में जाता  देखकर कालनेमि श्री राम नाम का भजन करने लगता है, जिससे सुनकर हनुमान जी को जिज्ञासा होती है कि ऐसे दुर्गम स्थान पर श्री राम का कोई भक्त है जो कि उनका नाम से भजन कर रहा है। एक राम भक्तों की कुटिया जानकर हनुमान जी उससे मिलने  के लिए नीचे जाते हैं और देखते हैं कि कुटिया के बाहर एक ऋषि महात्मा बैठे है और राम नाम का गुणगान करते हुए कह रहे है, " राम जय जय राम श्री राम जय जय राम मैं तो राम ही राम पुकारू। हनुमान उन्हें प्रणाम करते हैं पूछते हैं कि महात्मन" आप इस दुर्गम स्थान पर श्री राम के कोई भक्त मालूम होते है। 

तब ऋषि रूप धारण किया हुआ कालनेमि राक्षस हनुमान जी को अपने बातों में सम्मोहित कर लेता है और यह प्रदर्शित करता है कि वह बहुत बड़ा ज्ञानी हैं और वह सब कुछ जानता है। वह हनुमान को बताता है कि तुम संजीवनी लेने के लिए आए हो। उनके इन बातों से हनुमान जी बहुत अधिक प्रभावित होते हैं और उनसे पूछते हैं कि महात्मा आपको या कैसे पता? । तब वह कालनेमि राक्षस  कहता  है कि मैं श्री राम का भक्त हूं और उनकी महिमा से सब कुछ जानता हूं।  और आपसे निवेदन करता हूं कि आप बहुत दूर जा रहे हैं इसलिए कुछ समय रुक कर यहां पर विश्राम कीजिए। हनुमान जी कहते हैं कि उन्हें सूर्योदय से पहले संजीवनी लेकर पहुंचना है इसलिए वह विश्राम नहीं कर सकते, लेकिन कालनेमि राक्षस कहता है कि वह है अपने चमत्कार से हनुमानजी को पल भर में द्रोणागिरी पर्वत पर पहुंचा देगा लेकिन इसके लिए तुम पहले पास ही के तालाब में स्नान करके आओ तब मैं तुम्हें अपना शिष्य बना लूंगा और तुम्हारे अभी मनोरथ सिद्ध कर दूंगा। 

कालनेमि राक्षस का भेद खुलना 

ऋषि रूप धारण किए हुए कालनेमि राक्षस की बातों में आकर हनुमान जी तालाब में स्नान करने के लिए जाते हैं । जब हनुमानजी तालाब में स्नान कर रहे होते हैं तब उन पर एक मगरमच्छ हमला करता है। काफी देर मगरमच्छ से उलझने के बाद हनुमान जी के हाथों वह मगरमच्छ मृत्यु को प्राप्त हो जाता है, और मरते ही उस मगरमच्छ के अंदर से एक स्त्री की दिव्य आत्मा निकलती है। हनुमान जी के पूछने पर वह स्त्री की आत्मा उन्हें बताती  हैं कि वह एक देवकन्या है जो कि एक ऋषि के श्राप के कारण मगरमच्छ बन गई थी। आपके हाथों से मृत्यु को प्राप्त होकर मैं अपने श्राप से मुक्त हो गई हूं।  किंतु सावधान" आपके रास्ते की असली बांधा वह कपटी और मायावी  कालनेमि राक्षस है जो  ऋषि का वेश धारण करके आपके साथ छल कर  रहा है। वह कोई ऋषि नहीं बल्कि रावण का भेजा हुआ एक राक्षस, कालनेमि है।  उसका परम उद्देश्य आपको उलझा कर आपका समय नष्ट करना है ताकि आप संजीवनी लेकर सूर्योदय से पहले ना पहुंच पाए और लक्ष्मण जी के प्राण संकट में पड़ जाए। 

हनुमान द्वारा कालनेमि राक्षस का वध 

यह सब जानकर हनुमान जी क्रोध में आ  कर उस कालनेमि राक्षस पर आक्रमण कर देते हैं और कुछ  समय की झड़प के बाद वह कालनेमि राक्षस का वध कर देते हैं। कालनेमि राक्षस के कारण हनुमान जी का काफी समय नष्ट हो चुका था इसलिए वह तीव्र वेग से द्रोणागिरी पर्वत की ओर बढ़ते हैं और कुछ समय पश्चात द्रोणागिरी पर्वत पर पहुंच जाते हैं। जहां पर उन्हें एक अद्भुत पर्वत दिखाई देता जो कि दिव्य  प्रकाश से चमक रहा था।  उसे देखकर हनुमान जी समझ जाते हैं कि यह वही पर्वत है जिस पर संजीवनी बूटी मिल सकती है। पूरा पर्वत दिव्या औषधीय गुणों वाली अनेक जड़ी बूटियों से भरा हुआ था। जिन्हें देखकर हनुमानजी को समझ में नहीं आ रहा था कि उनमें से अमृत संजीवनी कौन सी है। लेकिन वक्त की कमी होने के कारण हनुमान जी प्रतीक्षा  नहीं कर सकते थे । तब हनुमान जी अपना विराट रूप धारण करते हैं और औषधियों से भरा हुआ वह पूरा पर्वत ही उठा लेते हैं और लंका की तरफ चल पड़ते हैं।

हनुमान और भरत की भेंट । भरत - हनुमान संवाद 

संजीवनी बूटी लेकर जाते समय हनुमान जी के रास्ते में अयोध्या नगरी भी पड़ती है जहां पर श्री राम का जन्म हुआ था। जब हनुमान जी अयोध्या नगरी के ऊपर से औषधियों का पर्वत लेकर गुजर रहे थे, तब उन पर अयोध्या के सैनिकों की नजर पड़ती है। अयोध्या के सैनिक हनुमान  जी का  विशाल रूप को देखकर यह समझते  हैं कि कोई मायावी राक्षस अयोध्या पर आक्रमण करने के लिए आया है।  इसलिए इसकी सूचना वह नंदीग्राम जा कर अयोध्या के राजा भरत को देते हैं। अयोध्या पर संकट देखकर भरत तुरंत चले आते हैं, और देखते हैं कि एक विशाल वानर जैसा दिखने वाला कोई जीव  पूरा पर्वत लिए जा रहा है। उसे रोकने के लिए है भरत सम्मोहन अस्त्र का प्रयोग करते हैं। भरत का बाण लगते ही  हनुमान जी अचेत होकर भूमि पर गिरते हैं और मूर्छित हो जाते हैं। जब भारत उनके पास पहुंचते हैं तो हनुमान जी मूर्छित होते हुए भी राम राम जप रहे थे। हनुमान जी को मूर्छा में भी राम नाम जपते देखकर भरत जी को यह आभास हो जाता है कि ये  निश्चित ही कोई राम भक्त हैं। जिस पर बाण चलाकर उन्होंने घोर पाप किया है। अपने कार्य पर पश्चाताप करते हुए भरत हनुमान जी को जगाने का प्रयास करते हैं। कुछ ही देर में हनुमान जी होश में आ जाते हैं और भरत को देखकर आश्चर्य में पड़ जाते हैं क्योंकि भरत जी का चेहरा उनके आराध्य  श्री राम के जैसा ही दिखाई पड़ रहा था। 

जय श्री राम कहते हुए हनुमान उठ खड़े होते हैं। तब हनुमान जी अपना परिचय देते हैं तथा भरत का परिचय पाकर अत्यंत प्रसन्न होते हैं क्योंकि उनके आराध्य श्री राम के छोटे भाई भरत से उनकी पहली बार भेंट हुई थी। हनुमान का परिचय जानकर भरत उनसे श्री राम, लक्ष्मण और माता सीता के सकुशल होने की खबर पूछते हैं तो व्यथित होकर हनुमान जी भरत को सीता हरण, लंका में युद्ध तथा लक्ष्मण मूर्छा का समाचार भरत को सुनाते हैं जिसे सुनकर भरत जी विलाप करने लगते हैं।  कि उनके कारण श्री राम, लक्ष्मण और सीता को इतने दुख भोगने पड़े हैं। लेकिन समय की कमी होने के कारण हनुमान जी भरत को धीरज बनाते हुए संजीवनी लेकर वहां से चल पड़ते हैं।

लक्ष्मण जी की मूर्छा टूटना 

दूसरी तरफ लक्ष्मण जी के मूर्छित शरीर  अपने गोद में लेकर श्री राम विलाप कर रहे थे और उनकी नजरें लगातार  हनुमान जी की प्रतीक्षा कर रही थी। अचानक बजरंगबली हनुमान विशाल रूप में हाथ में पर्वत उठाए आते हुए दिखाई देते हैं और सभी के चेहरे पर एक संतोष की झलक नजर आती  हैं। संजीवनी औषध से भरा पर्वत हनुमान जी भूमि पर रख देते हैं जिसमें से वैद्यराज सुषैण  संजीवनी बूटी की पहचान करके उसकी पत्तियों से पीस कर  लक्ष्मण जी को पिलाते हैं। कुछ ही समय बाद लक्ष्मण जी पूर्ण रूप से चेतना में आ जाते हैं और उठ खड़े होते हैं। लक्ष्मण जी को ऐसा देखकर श्रीराम और  पूरी वानर सेना हर्षोल्लास से भर जाती  हैं। सारी  वानर सेना में जय जय श्रीराम के नारे लगने लगते हैं।

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