इंद्रजीत और लक्ष्मण का अंतिम युद्ध | लक्ष्मण द्वारा मेघनाद (इंद्रजीत) का वध | Meghnaad Vadh Story in hindi

इंद्रजीत और लक्ष्मण का अंतिम युद्ध | लक्ष्मण द्वारा मेघनाद (इंद्रजीत) का वध | Meghnaad Vadh Story in hindi

लक्ष्मण और मेघनाद का अंतिम युद्ध।  इंद्रजीत वध की कहानी 

रावण-मेघनाद का अंतिम संवाद ।   इंद्रजीत का वध

Indrajeet Vadh Story in Hindi  ( रामायण सम्पूर्ण कहानी हिंदी में )

लक्ष्मण के स्वस्थ होने की खबर लंका में पहुंचते ही रावण पुनः सकपका कर रह जाता है और अपने पुत्र मेघनाद को कहता है कि इंद्रजीत, वह वनवासी जिसे तुम मौत की नींद सुला कर आए थे फिर स्वस्थ हो गया है। गरुड़ के पराक्रम के कारण पहले नागपाश से मुक्ति तथा अब हनुमान के पराक्रम के कारण शक्ति से लक्ष्मण के प्राण बच जाने के कारण मेघनाथ झल्ला जाता है। वह क्रोध का घूंट पीकर रह जाता है। तब रावण कहता है कि शायद यह युद्ध हम जीत नहीं पाएंगे क्योंकि राम की सेना के लिए शायद असंभव कुछ भी नहीं है। हमारी हर चाल को वह है मात दे रहे हैं।  इस पर इंद्रजीत कहता है कि चिंता ना करें पिताजी, अगर लक्ष्मण बच गया तो क्या हुआ अब मैं ऐसा अमोघ प्रयोग करने जा रहा हूं जिसके पूरा होते ही इस युद्ध को समाप्त करने में एक दिन भी नहीं लगेगा। 

तब इंद्रजीत अपने पिता रावण को बताता है कि वह आज गुप्त रूप से कुलदेवी निकुंभला का यज्ञ करेगा जिसमें कुलदेवी निकुंभला यदि प्रसन्न हो गई, तो उनके आशीर्वाद से एक दिव्य रथ प्रकट होगा । वह दिव्य रथ अजेय होगा, जिस पर चढ़कर मैं राम लक्ष्मण से युद्ध करूंगा। उस दिव्य रथ की विशेषता यह है कि जब तक मैं उस रथ पर सवार रहूंगा तब तक संसार की कोई भी शक्ति मुझे पराजित नहीं कर सकती। इंद्रजीत अपने पिता रावण से आग्रह करता है कि मैं आज हे कुलदेवी निकुंभला का यज्ञ आरंभ करता हूं लेकिन इसकी सूचना आपके और मेरे सिवा किसी को भी नहीं होनी चाहिए । आप एक सेना तैयार करके कुछ बचे हुए योद्धाओं के साथ रणभूमि में भेज दीजिए, ताकि राम और लक्ष्मण उनसे युद्ध करने में उलझे रहे तथा मैं गुप्त रूप से अपना यज्ञ बिना किसी बाधा के संपन्न कर सकूं।

मेघनाद द्वारा कुलदेवी निकुंभला का यज्ञ करना 

रावण से आज्ञा लेकर मेघनाथ अपनी कुलदेवी निकुंभला के गुप्त मंदिर में जाकर यज्ञ करने लगता है। इसकी सूचना विभीषण के गुप्तचर को पता चलती है । यह सूचना पाकर विभीषण जी श्री राम और लक्ष्मण के समक्ष जाते हैं और उन्हें बताते हैं कि मेघनाथ कल रात्रि के समय से ही हमारी कुल देवी निकुंभला का यज्ञ कर रहा है। बात को स्पष्ट करते हुए विभीषण जी कहते हैं कि इंद्रजीत को स्वयं ब्रह्मा जी ने यह वरदान दिया था कि जब भी इंद्रजीत अपनी कुलदेवी निकुंभला का यज्ञ पूरा करेगा तो उसकी ज्वाला से एक दिव्य तथा अजेय रथ प्रकट होगा । जब तक इंद्रजीत उस पर चढ़कर युद्ध करेगा उसे कोई भी पराजित नहीं कर सकता। कुलदेवी निकुंभला के मंदिर का रास्ता केवल मेघनाथ, लंकेश रावण और मुझे ही पता हैं। कृपया करके मेघनाथ द्वारा  यह यज्ञ पूरा होने से रोक लीजिए वरना अगर उसने यज्ञ संपन्न कर लिया तो उसे हरा पाना किसी के लिए भी संभव नहीं होगा। 

विभीषण की बातों से सहमत होकर श्री राम लक्ष्मण के साथ हनुमान, अंगद, सुग्रीव, नल, नील आदि को निकुंभला देवी के मंदिर के दुर्गम स्थान पर भेजते हैं । जहां वह मेघनाथ के यज्ञ को भंग कर सके। मंदिर में पहुंचकर हनुमान और वानर सैनिक मेघनाद के यज्ञ को भंग कर देते हैं जिससे क्रोधित होकर मेघनाथ गरजता हुआ बाहर निकलता है। मंदिर के बाहर ही लक्ष्मण जी विभीषण और सुग्रीव के साथ उसकी प्रतीक्षा कर रहे थे। उसके के मंदिर से बाहर आते ही लक्ष्मण जी उसे युद्ध के लिए ललकारते हैं। लक्ष्मण के पास खड़े विभीषण को देखकर मेघनाद समझ जाता है कि मंदिर पहुंचने का गुप्त रास्ता विभीषण ने ही शत्रु को बताया होगा। इसी वजह से विभीषण को कुलद्रोही तथा देशद्रोही कहकर इंद्रजीत अत्यधिक क्रोध में विभीषण को मारने के लिए यमराज का अस्त्र यम अस्त्र उस पर चला देता है, लेकिन लक्ष्मण जी अपने एक शक्तिशाली बाण से यम अस्त्र को निष्प्रभाव कर देते हैं।

इंद्रजीत और लक्ष्मण ने अंतिम युद्ध 

तब फिर से इंद्रजीत और लक्ष्मण जी के मध्य युद्ध छिड़ जाता है। लेकिन आज का यह युद्ध मेघनाथ के लिए अंतिम युद्ध था क्योंकि ब्रह्मदेव ने जब इंद्रजीत को निकुंभला देवी के यज्ञ से दिव्य रथ प्राप्त होने का वरदान दिया था तो उन्होंने यह भी स्पष्ट किया था कि जो भी तुम्हारे इस यज्ञ को भंग करेगा उसी के हाथों तुम्हारी मृत्यु भी होगी। ब्रह्मदेव के उसी कथन के कारण आज मेघनाथ की मृत्यु लक्ष्मण के हाथों निश्चित थी। लेकिन फिर भी अपने पराक्रम और वीरता के कारण मेघनाथ घमासान युद्ध करता है लेकिन लक्ष्मण जी हर बार उसके हर बाण को काट देते तथा निष्प्रभाव कर रहे थे।

 अपनी पराजय को सामने देखकर इंद्रजीत अपने सबसे घातक महा अस्त्रों का प्रयोग करता है। इंद्रजीत सबसे पहले ब्रह्मास्त्र का प्रयोग लक्ष्मण जी पर करता है लेकिन ब्रह्मास्त्र लक्ष्मण जी के पास जाकर बिना वार किए वापस लौट जाता है। यह देखकर इंद्रजीत हैरान हो जाता है । इसलिए  वह क्रोधित होकर भगवान शिव का पाशुपतास्त्र लक्ष्मण जी पर चला देता है लेकिन पाशुपात अस्त्र भी बिना प्रभाव किए ही वापस लौट आता है। प्रयासरत इंद्रजीत त्रिलोकी की अंतिम शक्ति भगवान विष्णु का सुदर्शन चक्र का अस्त्र लक्ष्मण जी पर चलाता है लेकिन जोकि लक्ष्मण जी शेषनाग का अवतार थे इसलिए वह सुदर्शन चक्र लक्ष्मण जी की परिक्रमा करके वापस मेघनाथ के पास चला जाता है। यह देख कर मेघनाथ को विश्वास हो जाता है कि लक्ष्मण और श्री राम कोई साधारण मानव नहीं है वह निश्चित है भगवान का कोई अवतार है यही समझाने के लिए मेघनाथ युद्ध छोड़कर रावण के पास आता है और बाहर से ही उन्हें संबोधित करने लगता है। 

रावण-मेघनाद का अंतिम संवाद

अपने पुत्र इंद्रजीत को ऐसे व्यथित देखकर रावण समझ जाता है कि इंद्रजीत का यज्ञ पूरा नहीं हुआ है। पूछने पर इंद्रजीत बताता है कि आपका छोटा भाई कुल द्रोही विभीषण शत्रु को मंदिर के गुप्त स्थान पर ले आया और उन्होंने मेरा यज्ञ विध्वंस करा दिया। तो मैंने क्रोध में विभीषण पर यमराज का यम अस्त्र चलाया किंतु लक्ष्मण ने अपने तीर से उसे निष्फल कर दिया। तब इंद्रजीत रावण को बताता है कि आज मैंने लक्ष्मण पर त्रिदेव की शक्तियों से भी प्रहार किया। लेकिन त्रिदेव का कोई भी अस्त्र लक्ष्मण को तनिक भी हानि नहीं पहुंचा पाया। यह देख कर मुझे विश्वास हो गया है कि श्री राम और लक्ष्मण अवश्य ही भगवान के अवतार हैं। आज मेरी मृत्यु निश्चित है इसलिए मैं आपको एक पुत्र होने के नाते यह परामर्श देने आया हूं कि आप खुद को और लंका नगरी को विध्वंस होने से बचा लीजिए। हो सके तो आप श्रीरम से क्षमा मांग कर उनकी शरण में चले जाएं। जिससे लंका के सभी निर्दोष प्राणी युद्ध के विनाश से बच जाएंगे। अपने वीर और सबसे प्राक्रमी पुत्र इंद्रजीत के मुंह से शत्रु कि इतनी प्रशंसा सुनकर रावण को क्रोध आ जाता है और वह इंद्रजीत पर क्रोधित होकर बोलता है कि इंद्रजीत। शायद तुम अपना मानसिक संतुलन खो बैठे हो जो ऐसी अनर्गल बातें कर रहे हो। 


लक्ष्मण द्वारा मेघनाद  का वध

मेघनाद (इंद्रजीत) का वध

तब रावण अपने पुत्र को कहता है,  इंद्रजीत" यदि तुम्हें लगता है कि राम और लक्ष्मण भगवान का अवतार है। तो तुम चाहो तो अपने भवन में जाकर विश्राम कर सकते हो यह मेरी लड़ाई है मैं इसे खुद ही लड़ लूंगा। इस पर इंद्रजीत कहता है कि मुझे क्षमा करें पिताजी" मैं एक कायर बनकर जीवित रहने से बजाय, एक वीर योद्धा की भांति युद्ध में लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त होना उचित समझूंगा। इसलिए मैं युद्ध करने के लिए अवश्य जाऊंगा चाहे मुझे स्वयं भगवान से भी युद्ध क्यों न करना पड़े । लेकिन अपने वीरता को दाग नहीं लगने दूंगा। यह कहकर इंद्रजीत पुनः रणभूमि में आ जाता है और लक्ष्मण से युद्ध करने लगता है कुछ समय के युद्ध के पश्चात लक्ष्मण जी अपना महाशक्तिशाली बाण दवारा इंद्रजीत पर प्रहार करते है जिससे इंद्रजीत का मस्तक कटकर भूमि पर जा गिरता है। और इस तरह लंका के सबसे शक्तिशाली तथा प्राक्रमी योद्धा मेघनाथ (इंद्रजीत) का अंत हो जाता है।

मेघनाद के शव को लंका में सौंपना

इंद्रजीत का शव देखकर जामवंत और सुग्रीव जी श्रीराम से यह कहते है की इस असुर कुमार ने हमारी सेना को हद से ज्यादा क्षति पहुंचाई है और इसने आप पर और लक्ष्मण जी पर भी नागपाश और प्राण घातिनी शक्तियों का प्रयोग किया था।  इसीलिए इसके मृत शरीर की हम ऐसी दुर्गति करेंगे की कोई भी असुर इसे देख तक नहीं पाएगा।  लेकिन उनकी यह बात को अस्वीकार करते हुए श्रीराम कहते है की यह उचित नहीं है।  इंद्रजीत केवल तब तक हमारा शत्रु था जब तक वह जीवित था। मरने के बाद कोई किसी का नहीं होता। मैं इस वीर असुर कुमार की वीरता को प्रणाम करता हूँ।  तब श्रीराम हनुमान को यह आदेश देते है की मेघनाद के शव को पुरे सम्मान के साथ लंका को सौंप दिया जाए। हनुमान मेघनाद का शव ले जाकर लंका के द्वारा के पास रख देते है जहा से लंका के सैनिक उसके शव को ले जाते है। 

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