राम - रावण का अंतिम युद्ध । रावण का अंत। Death of Ravan in Hindi

राम - रावण का अंतिम युद्ध । रावण का अंत। Death of Ravan in Hindi

राम रावण अंतिम युद्ध । राम द्वारा रावण का वध 

Ram Ravan final battle . Ramayan full story in hindi

अपने एकमात्र बचे हुए पराक्रमी पुत्र इंद्रजीत का मृत शरीर देखकर रावण को गहरा धक्का लगता है और वह चिल्ला उठता है "प्रतिशोध"। रावण अपने पुत्र इंद्रजीत से अत्यधिक प्रेम करता था जिस वजह से वह उसकी मृत्यु को सहन नहीं कर पा रहा था। अपने प्रिय पुत्र इंद्रजीत के शव को देखकर रावण का क्रोध किसी ज्वाला की तरह भड़क उठता है और वह  राम लक्ष्मण से प्रतिशोध लेने की बात कहता है। रावण के नाना माल्यवान  जी  उसे यह आभास करवाते हैं कि उनके सीता मोह  के कारण लंका के सभी योद्धा मृत्यु को प्राप्त हो चुके हैं। माल्यवान की यह बात सुनकर रावण को सीता पर भी क्रोध आता है और अपनी तलवार लेकर वह सीता को ही मारने की इच्छा जाहिर करता है। और कहता है कि सीता की वजह से ही हमारे कुल का नाश हो गया है इसलिए अपने कुल के नाश की जड़ को  में आज समाप्त कर दूंगा। लेकिन उस समय रावण के ससुर "मय दानव" भी वहीं पर उपस्थित थे। वह रावण को यह कह कर रोक लेते हैं कि युद्ध के अंतिम समय में आप एक निहत्थे स्त्री का वध करके अपने कुल के कलंक का भागी न बनिए। अगर आप सीता को मार देंगे तो पूरा संसार यही कहेगा कि रावण अपने शत्रु का मुकाबला नहीं कर पाया तो एक स्त्री का वध करके अपने प्रतिशोध को पूरा कर रहा है। यह बात सुनकर रावण को अपने किए का आभास  होता है और वह रुक जाता है। तब धीरज रखकर रावण अपने पुत्र मेघनाथ का अंतिम संस्कार करता है तब तक श्री राम की सेना कोई आक्रमण नहीं करती है। 


राम द्वारा रावण का अंत

रावण का रणभूमि में आना 

इंद्रजीत की मृत्यु के बाद लंका की सेना में केवल रावण ही रह गया था जो युद्ध कर सकता था। अगले दिन वह पूरी तैयारी करके रणभूमि में जाता है और गरजता हुआ राम लक्ष्मण को ललकारता है। प्रतिशोध की ज्वाला में जलता हुआ रावण लक्ष्मण को ललकारते हुए कहता है, कहां है लक्ष्मण? जिसने मेरे पुत्र का वध किया । आज उस  लक्ष्मण के प्राण लेकर मैं अपने प्रतिशोध की ज्वाला ठंडी करूंगा। यह कहकर रावण अपने तीव्र बाण लक्ष्मण पर चलाता है लक्ष्मण जी भी बाण चलाते है और  रावण के बाणों का उत्तर देते हैं। उन दोनों का युद्ध देखकर जामवंत जी श्री राम से आग्रह करते हैं कि, हे प्रभु। अपने पराक्रमी पुत्र के मृत्यु से आहत हुआ रावण स्वयं महाकाल का रूप बनकर आया है। उसका सामना आपके अलावा कौन कर सकता है।  इसलिए कृपया आप स्वयं जाकर   युद्ध में उसका सामना कीजिए।

राम - रावण संवाद 

जामवंत का परामर्श श्री राम स्वीकार करते हैं और रावण से युद्ध करने के लिए सामने आ जाते हैं। श्री राम के सामने आते ही रावण फिर से उन्हें  ललकारता   है और उनसे प्रतिशोध लेने की बात कहता है। लेकिन श्री राम रावण के अहंकार का ज्ञान करवाते हैं उसे उसकी दुर्दशा का आभास करवाते हैं, कि कैसे उसके एक दुष्कर्म के कारण पूरी लंका का विनाश होने को है। श्रीराम के बातों का रावण पर कोई असर नहीं हुआ और वह धनुष उठाकर श्री राम पर बाण चला देता है। श्री राम और रावण के बीच में युद्ध आरंभ हो जाता है वहीं पर विभीषण जामवंत हनुमान सुग्रीव लक्ष्मण सभी श्रीराम के आसपास खड़े हुए थे। विभीषण को देखकर रावण को उस पर क्रोध आता है।  क्योंकि  उसी कुल द्रोही के कारण उसके सभी मित्रों की मृत्यु हो गई है, यही सोचकर रावण विभीषण को मारने के लिए घातक शक्ति उस पर चला देता है और बोलता है कि इस शक्ति से तुझे भगवान भी नहीं बचा सकते।

राम - रावण का युद्ध 

विभीषण के प्राण संकट में देखकर श्री राम आगे आकर रावण द्वारा चलाई हुई शक्ति अपने सीने पर ले लेते हैं। उस शक्ति के कारण श्री राम के वक्ष स्थल पर घाव हो जाता है और वे जख्मी हो जाते हैं। श्रीराम की  यह हालत देखकर विभीषण को रावण पर क्रोध आ जाता है और वह रावण से लड़ने के लिए उसके सामने चले जाते हैं।  दोनों में युद्ध आरंभ हो जाता है। उसी समय जामवंत भी विभीषण की सहायता के लिए आगे आते हैं और अपने दोनों हाथों से रावण के बगल में प्रहार करते जिसे रावण अचेत हो जाता है। रावण को मूर्छित देखकर उसका सारथी उसके रथ को पीछे ले जाता है। लेकिन कुछ ही समय बाद होश में आते ही रावण दुगनी तेजी से रणभूमि में आ जाता है और गरजने लगता है। श्रीराम उसकी ललकार सुनकर आते हैं और दोनों में फिर से युद्ध शुरू हो जाता है।

--- एक तरफ तीनों लोग का अधिपति रावण था तो दूसरी तरफ मर्यादा पुरुषोत्तम तथा तीनों लोगों के स्वामी श्री राम थे। दोनों ही महापराकर्मी तथा महाशक्तिशाली प्रतिद्वंदी थे। दोनों एक दूसरे पर बाण चला रहे थे और एक दूसरे के बाणों  को काट रहे थे। लंका के सैनिक तथा वानर  सैनिक सभी आपस में लड़ना छोड़कर  राम - रावण का युद्ध देखने लगते । आकाश में सभी देवता, त्रिदेव, ऋषि मुनि सभी राम रावण के युद्ध के साक्षी थे। क्योंकि भगवान विष्णु का श्री राम के रूप में अवतार लेने का परम उद्देश्य यही था कि वह 1 दिन अत्याचारी, पापी रावण का अंत करेंगे। युद्ध में दोनों एक दूसरे के बाणों से घायल होते हैं। श्री राम और रावण के बीच युद्ध निर्णायक होने जा रहा था लेकिन सूर्यास्त होने के कारण युद्ध स्थगित कर दिया जाता है तथा रावण अपनी सेना लेकर लंका में लौट जाता है।

 राम - रावण युद्ध की अंतिम रात्रि

आज के इस युद्ध में रावण श्रीराम के बाणों से बहुत घायल हुआ था तथा  श्रीराम भी रावण के घातक बाणों  से घायल हुए थे। रावण की पत्नी मंदोदरी उसके घाव पर लेप लगाती है तथा उसे अंतिम बार समझाने का प्रयास करती है कि वह अपने अहंकार छोड़कर राम  से क्षमा मांग ले तो उनकी लंका अनाथ होने से बच जाएगी। लेकिन रावण मंदोदरी के निवेदन को भी अस्वीकार कर देता है। दूसरी तरफ लक्ष्मण जी श्रीराम के घाव  पर स्नेह लेप लगाते है। श्री राम तथा रावण दोनों की सेनाओं में रात के समय यही चर्चा चल रही थी कि कल के युद्ध में हार जीत का निर्णय हो जाएगा अवश्य ही  कल का युद्ध बड़ा भयंकर होगा। 

राम रावण के युद्ध का अंतिम दिन

अगले दिन सूर्य उदय होता है । और युद्ध भूमि में सन्नाटा पसरा हुआ था क्योंकि कुछ ही देर में वहां पर एक महाप्रलयंकारी युद्ध होने जा रहा था। राम रावण का यह विनाशकारी युद्ध इतिहास में एक ही बार हुआ। श्री राम और रावण के बीच होने वाला यह युद्ध देखने के लिए स्वयं देवता भी प्रकट हुए थे। 

दूसरी तरफ लंकापति रावण भी अपने सभी अस्त्र-शस्त्र तैयार करके अपने निर्णायक युद्ध के लिए अपनी सेना लेकर आया। दूसरी और श्री राम की सेना भी पूरी तत्परता से आज के निर्णायक युद्ध के लिए तैयार थी। एक तरफ रावण अपने विशाल रथ पर सुसज्जित होकर युद्ध भूमि में आता है। वही दूसरी ओर श्री राम नंगे पैर भूमि पर खड़े थे। यह देख कर देवताओं के राजा इंद्र ने ब्रह्मदेव से यह विनती करते है की, श्री राम और रावण के युद्ध में समानता नहीं है। देवराज इंद्र ने ब्रह्मदेव से कहा कि, हे ब्रह्मदेव । एक और लंकापति रावण अपने अजय रथ पर सुसज्जित होकर युद्ध भूमि में आया है वही प्रभु श्री राम युद्ध भूमि में नंगे पैर खड़े हैं । यह युद्ध समानता का नहीं है । इसलिए कृपया करके इसका कोई समाधान बताइए। तब ब्रह्मदेव ने देवराज इंद्र से कहा, हे देवराज । आपका कथन उचित है। इसीलिए आप श्री राम की सहायता के लिए अपना दिव्य रथ उनकी सेवा में भेज दीजिए। श्री राम के इस युद्ध में उनकी सहायता करने से आप देवताओं के सारे मनोरथ सिद्ध होंगे। ब्रह्मदेव की आज्ञा पाकर देवराज इंद्र अपना दिव्य रथ और सारथी मातले को श्री राम की सेवा में भेजते है। 

देवराज इंद्र का दिव्य रथ 

युद्ध आरंभ  होने से कुछ समय पहले आकाश मार्ग से एक दिव्य रथ श्रीराम के समीप उतरता है। सभी उस रथ को देख कर असमंजस में पड़ जाते हैं कि यह किस का रथ है । तब उस रथ के सारथी मातले बताता है, कि उसे देवराज इंद्र ने भेजा है। ताकि रावण के साथ युद्ध करने में उनकी सहायता की जा सके। तब श्री राम कहते हैं कि हमने तो देवराज इंद्र से कोई सहायता नहीं मांगी फिर उन्होंने अपना यह रथ क्यों भेजा है। श्रीराम की इस बात से लक्ष्मण भी सहमत होते हैं, और कहते हैं कि इसमें राक्षस सेना का कोई षड्यंत्र भी हो सकता है। तब रथ का सारथी माथले बताता है कि स्वयं ब्रह्मा जी की आज्ञा से देवराज इंद्र ने रावण से युद्ध करने में सहायता करने हेतु आपके लिए यह रथ भेजा है। तब मातले देवराज इंद्र के रथ की विशेषताएं बताते हुए कहता है कि इस रथ के घोड़े मन की गति से चल सकते हैं, यह रथ आकाश मार्ग में चल सकता है और आपके शत्रु के रथ से अधिक तेज गति से भाग सकता है। इसलिए कृपा करके आप इस रथ पर विराजमान हो जाइए क्योंकि लंकापति रावण मायावी युद्ध में निपुण है । रावण के कपट युद्ध से बचने में आपको यह रथ सहायक होगा। मातले की बातों से श्री राम को उस पर विश्वास हो जाता है । और वह इंद्र के रथ पर सवार हो जाते हैं और रणभूमि में आ जाते है। 

अपने शत्रु को दिव्य रथ पर विराजमान देखकर रावण आश्चर्यचकित हो जाता है और अपने सारथी से पूछता है कि वन में भटकने वाले इस वनवासी के पास ऐसा दिव्य रथ कहां से आया। तब रावण का सारथी उसे बताता है कि यह देवराज इंद्र का रथ है। यह सुनकर रावण देवराज इंद्र पर भी क्रोधित होता है। 

राम - रावण का अंतिम युद्ध

अपने धनुष की प्रत्यंचा की डंकारा बजाते हुए रावण, श्रीराम को ललकारता है और कहता है कि केवल दिव्य रथ होने से कोई युद्ध नहीं जी ज्यादा उसके लिए अपना बाहुबल भी दिखाना पड़ता है। यह कहकर रावण श्रीराम पर बाण चला देता है इसके उत्तर में श्री राम भी बाण चलाते हैं। दोनों महाशक्तिशाली योद्धाओं में भीषण युद्ध छिड़ जाता है। बहुत देर तक युद्ध चलने के बाद रावण अपने रथ को आकाश में ले जाता है और ऊपर से ही श्री राम पर तीरों की बौछार करता है। यह देखकर श्री राम भी अपने सारथी मातले को कहते हैं कि तुम भी रथ को आकाश में ले चलो। मातले श्री राम के रथ को भी आकाश में रावण के रथ के समकक्ष ले जाता है । फिर से दोनों एक दूसरे पर बाणों की बौछार करने लगते हैं। बहुत समय तक जब कोई परिणाम नहीं निकलता तो श्रीराम अपने दिव्यास्त्र से रावण का मस्तक काट देते हैं। लेकिन यह क्या, रावण का मस्तक काटते हैं ही उसके धड़ पर दूसरा मस्तक पैदा हो गया। यह देखकर श्रीराम भी आश्चर्य में पड़ जाते हैं और वह फिर से अपना एक दिव्यास्त्र रावण पर चलाते हैं जिससे रावण का मस्तक फिर से कट जाता है। मस्तक कटते ही रावण का दूसरा मस्तक फिर से आ जाता है और रावण जोर-जोर से हंसने लगता है। यह सब देखकर श्रीराम थोड़े विचलित होने लगते हैं। और वह बारंबार रावण पर दिव्यास्त्र चलाते हैं जिनसे रावण का मस्तक कट के गिर जाता है लेकिन जितनी बार भी रावण का मस्तक कटता है उतनी ही बार एक नया मस्तक वहां पर उग जाता है। 

विभीषण द्वारा रावण के अमरत्व का रहस्य बताना

यह सब देख कर विभीषण जी ऊपर श्रीराम के समीप जाकर उन्हे रावण के अमृत का रहस्य बताते हैं। विभीषण श्रीराम से कहते हैं, हे राम। रावण का मस्तक काट देने से उसकी मृत्यु कभी नहीं होगी क्योंकि ब्रह्मदेव के वरदान के कारण उसकी नाभि में अमृत है। नाभि में अमृत होने के कारण ही उसका मस्तक कटने के बाद तुरंत दूसरा मस्तक उग जाता है। यदि आप रावण का अंत करना चाहते हैं तो उसके नाभि में स्थित अमृत को नष्ट करना होगा तभी रावण की मृत्यु हो सकती है।

श्रीराम द्वारा रावण का वध । रावण का अंत

 यह रहस्य जानकर श्री राम अपना महाशक्तिशाली महा अस्त्र संधान करके रावण पर चला देते हैं। वह तीर जाकर रावण की नाभि पर लगता है जिससे रावण की नाभि में स्थित सारा अमृत नष्ट हो जाता है। तब श्री राम एक और दिव्यास्त्र मंत्र उपचार करके रावण पर चला देते हैं। वह तीर लगते ही रावण धराशाई हो जाता है और श्रीराम, श्रीराम कहता हुआ आकाश से लुढ़कता हुआ भूमि पर आकर गिरता है और मृत्यु को प्राप्त हो जाता है । और इस प्रकार असुरराज, लंकापति, तथा त्रिलोकाधिपति रावण का अंत हो जाता है। 

श्रीराम की जयकार

रावण का अंत होते ही तीनो लोक श्री राम की जय जयकार करने लगते हैं। देवता भी श्री राम के ऊपर पुष्प वर्षा करते हैं क्योंकि उनके इतने वर्षों के मनोरथ को आज श्रीराम ने सफल कर दिया था। 

रावण की शक्ति और अहंकार

रावण देवताओं का परम शत्रु था क्योंकि नवग्रह उसके अधीन थे, तथा देवराज इंद्र भी उससे भयभीत रहते थे । रावण को ब्राह्मण देव से यह वरदान प्राप्त था कि कोई भी देवता, असुर, नाग, किन्नर, गंधर्व उसको मार नहीं सकते। लेकिन अपने अहंकार के कारण रावण यह भूल गया था कि उसके वरदान में उसे मानव से सचेत नहीं किया गया था। इसके पीछे कारण यह था कि रावण मनुष्य को तुच्छ समझता था और वह सोचता था कि एक मनुष्य मुझे चाह कर भी मार नहीं सकता इसलिए उसने अपने वरदान में मानव से बचाव के लिए नहीं कहा था। 

रावण के अहंकार के कारण हुई चूक ही उसकी मृत्यु का कारण बनी। जब रावण के अत्याचार पृथ्वी पर अत्यधिक बढ़ गए थे तब सभी देवताओं ने भगवान विष्णु से सहायता मांगी तब उन्होंने देवताओं को आश्वस्त किया था कि वह भूमि पर साधारण मानव श्रीराम के रूप में जन्म लेंगे और उसी रूप में वह रावण का अंत करेंगे।

-रामायण की कहानी -

श्रवण कुमार की कथा तथा दशरथ को पुत्र वियोग का श्राप

श्री राम जन्म कथा | श्री राम और उनके भाइयों का जन्म

श्री राम द्वारा ताड़का वध तथा अहिल्या का उद्धार

सीता स्वयंवर की कथा। श्रीराम और माता सीता का विवाह 

राम वन गमन । श्री राम के वनवास की कहानी 

सूर्पनखा की नाक कटना तथा खर-दूषण का वध 

सीता हरण और रावण_जटायु का युद्ध

राम जटायु संवाद तथा शबरी के बेर

राम हनुमत मिलन । राम सुग्रीव की मित्रता

सुग्रीव - बाली का युद्ध | श्रीराम के द्वारा बाली का वध

सीता की खोज । हनुमान द्वारा समुंदर लांघना

विभीषण-हनुमत मिलन | हनुमान तथा माता सीता का संवाद

लंका दहन तथा हनुमान - रावण संवाद

श्रीराम तथा विभीषण की भेंट  , राम सेतु निर्माण

अंगद रावण संवाद तथा अंगद का पैर

रावण द्वारा शांति प्रस्ताव अस्वीकार करना। रामायण युद्ध का आरंभ

रामायण युद्ध का पहला दिन

रावण लक्ष्मण युद्ध तथा राम - रावण प्रथम युद्ध

कुम्भकरण- रावण संवाद   श्रीराम द्वारा कुम्भकरण का वध 

रावण के पुत्रो का अंत। लक्ष्मण द्वारा अतिकाय का वध

लक्ष्मण-मेघनाद का युद्ध । राम-लक्ष्मण को नागपाश में बांधना

हनुमान - गरुड़ संवाद । राम - लक्ष्मण की नागपाश से मुक्ति 

लक्ष्मण - मेघनाद युद्ध और लक्ष्मण मूर्छा | हनुमान का संजीवनी लाने के लिए प्रस्थान

हनुमान - भरत मिलाप  | हनुमान द्वारा संजीवनी लाना | लक्ष्मण मूर्छा का टूटना

इंद्रजीत और लक्ष्मण का अंतिम युद्ध | लक्ष्मण द्वारा मेघनाद (इंद्रजीत) का वध


एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ